#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल
#आस_के_दीप_पास_जलते_हैं ।
आस के दीप पास जलते हैं ।
दूर गम के चिराग बुझते हैं ।
फोन देता नहीं ज़रा फ़ुर्सत,
अब कहाँ हम किताब पढ़ते हैं ।
तुम करो बैंक में जमा खुशियाँ,
हम भी गम बेमिसाल रखते हैं ।
झोंक देते तमाम ताकत हम,
तब कहीं ये इनाम मिलते हैं ।
रात भर नींद क्यों नहीं आती,
ख़्वाब अच्छे बुरे मचलते हैं ।
काम करते ख़राब वो अक्सर,
इसलिए ही सवाल उठते हैं ।
कुछ भी हासिल हमें नहीं होता,
आजमाईश खूब करते हैं ।
बेवफा याद जब हमें आते,
आब-ए-चश्म तब निकलते हैं ।
कर्ज़ का बोझ चढ़ गया सर पर,
इससे दबकर किसान मरते हैं ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 24092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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