#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल
#सुलह_के_कुछ_नहीं_आते_नज़र_आसार_जाने_क्यूँ
सुलह के कुछ नहीं आते नज़र आसार जाने क्यूँ ।
उन्होंने तो बना ली बीच में दीवार जाने क्यूँ ।
लगाते हम हमेशा दम किसी भी खेल में पूरी,
अधूरी जीत मिलती है अधूरी हार जाने क्यूँ ।
जिसे था खेलना दिल से खिलौना सा समझ तोड़ा,
हुआ था उस हसीना से हमें भी प्यार जाने क्यूँ ।
हकीमों की दवा भी तो असर कुछ अब नहीं करती,
सफाखाने हुए खुद ही बहुत बीमार जाने क्यूँ ।
कभी जो प्यार से बातें मुलाकातें किया करते,
ज़रा सी बात पर करते वही तक़रार जाने क्यूँ ।
किसी को मारकर कुछ भी कभी हासिल नहीं होता,
मगर फ़िर भी सभी रखते यहाँ हथियार जाने क्यूँ ।
परेशानी मिटाने को हमें हिम्मत दिलाते जो,
वही अब वक्त के हाथों हुए लाचार जाने क्यूँ ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 24092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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