ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
आरजू मिट गई आसरा मिल गया ।
आरजू मिट गई आसरा मिल गया ।
अज़नबी भीड़ में आश्ना मिल गया ।
जब रखा आपने हाथ सर पे ज़रा,
आसमाँ नापने हौसला मिल गया ।
शेर बन आपके होंठ छूते रहें,
उस ग़ज़ल का हमें काफ़िया मिल गया ।
ढूंढते हम रहे ज़िंदगी भर जिसे,
वो मिला ही नहीं पर ख़ुदा मिल गया ।
हम भटकते रहे इस गली उस गली,
आप जो दिख गए बस पता मिल गया ।
शाम जब भी हुई याद आने लगी,
मयकशी के लिए मैकदा मिल गया ।
चाँद पे हम रहेंगे बना आशियाँ,
साथ हमको अगर आपका मिल गया ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 17092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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