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#आज_बीरान_हैं_जो_शहर_थे_यहाँ
आज बीरान हैं जो शहर थे यहाँ ।
खण्डहर से हुए हैं जो घर थे यहाँ ।
वो वहीं से हमें प्यार करते रहे,
हम मगर आज तक बेखबर थे यहाँ ।
छाँव जिनकी घनी मिल रही थी हमें,
अब नहीं दिख रहे जो शज़र थे यहाँ ।
हाथ खाली हुए बंद धंधे सभी,
था उसे काम जिसमें हुनर थे यहाँ ।
राह मुश्किल बड़ी दूर मंज़िल खड़ी,
हमसफर था नहीं पर सफ़र थे यहाँ ।
झुक गई है कमर झुर्रियाँ पड़ गईं,
देख जर्ज़र हुए जो अज़र थे यहाँ ।
कँपकँपा रहे सर्द दिन थे कभी,
साथ में गर्म से दोपहर थे यहाँ ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना-18092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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