#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल
#हिमालय_को_पिघलना_चाहिए_था ।
हिमालय को पिघलना चाहिए था ।
ज़रा सूरज चमकना चाहिए था ।
अटरिया पर बने इन घोंसलों में,
परिंदों को चहकना चाहिए था ।
मुहब्बत थी अगर हमसे कभी तो,
उन्हें इजहार करना चाहिए था ।
सदर पे आ गई कितनी चमक है,
शहर को भी निखरना चाहिए था ।
खिले हैं फूल गुलशन में सनम के,
उन्हें अब तो सँवरना चाहिए था ।
पतंगा जल रहा था प्यार में जब,
शमाँ का मोम बहना चाहिए था ।
उन्होंने प्यार में धोखा दिया तो,
तुम्हें उनसे झगड़ना चाहिए था ।
अगर वो पास में आ ही गए थे,
उन्हें कस के जकड़ना चाहिए था ।
खिलौना मांगने अब खेलने को,
कोई बच्चा मचलना चाहिए था ।
अवधेश कुमार सक्सेना - 02092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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