#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिंदुस्तानी_ग़ज़ल
#किनारे_देखता_में_जा_रहा_हूँ ।
किनारे देखता मैं जा रहा हूँ ।
नदी की धार को दौड़ा रहा हूँ ।
गया जो दूर मुझको छोड़कर वो,
शबे फुरकत बहुत घबरा रहा हूँ ।
खिला हूँ कई सदी के बाद आकर,
चमन गुलशन सभी महका रहा हूँ ।
रुलाती है मुझे दुनिया बहुत पर,
हँसी मैं हर तरफ बिखरा रहा हूँ ।
नहीं डरना किसी भी बात से अब,
तुम्हें अपना बनाने आ रहा हूँ ।
बहुत गाये मुहब्बत के तराने,
भजन अब राम के मैं गा रहा हूँ ।
मुझे है हर खबर सारे जहां की,
किताबें मैं बहुत पढ़ता रहा हूँ ।
झलक तेरी बड़ी राहत दिलाती,
तेरे दीदार को आता रहा हूँ ।
रहें खुशहाल वो कर बेवफ़ाई,
वफ़ा के दर्द मैं सहता रहा हूँ ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 18092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
No comments:
Post a Comment