#अवधेश_की_कविता
#हरि_गीतिका_छंद
#चित्राभिव्यक्ति
1
कच्चे घड़े उल्टे रखे हैं, ईंट की दीवार है ।
चुपचाप इकतारा पड़ा है, सोच में गुलनार है ।
नवयौवना बैठी अकेली, जो किसी के ख्याल में ।
श्रृंगार सोलह आज करके, क्या करे इस हाल में ।
2
भोंहें बनीं काजल नयन में, कान कुंडल झूलते ।
सपने सुहाने याद आते, क्यों नहीं वो भूलते ।
मोती जड़े चूढ़े पहन कर, हाथ दोनों क्या करें ।
लाली रसीले होंठ पर है, फूल पर कैसे झरें ।
3
माथे लटकता मांग टीका, केश सज्जा खास है ।
नव वस्त्र के ये रंग फबते, स्वच्छ ये आवास है ।
नवरत्न वाला हार पहना, कंठ में पर प्यास है ।
प्रीतम मिलेंगे शीघ्र उसको, कर रही वो आस है ।
अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश
31082020
Awadhesh Kumar Saxena

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