सुमेरु छंद
122 212, 221 22
बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।
उठाती पीठ पे चींटी बजन है ।
बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।
समा लेता नदी पूरी समंदर ।
नचे झूमे करे मस्ती कलंदर ।
पिया की याद फिर मुझको सताती ।
बदन में आग फिर आकर लगाती ।
महीना आ गया सावन सुहाना ।
जवानी चाहती उस पर लुटाना ।
मिलन की आस में अँखिया खुलीं हैं ।
शयन सैया बिछी चादर धुलीं हैं ।
बसे जब से पिया परदेश जाकर ।
तसल्ली कर रही संदेश पाकर ।
टलेगा युद्व तो छुट्टी मिलेगी ।
चमन में फिर कली जूही खिलेगी ।
अचानक छिड़ गया जब युद्ध भारी ।
लड़े जमकर लगा जब शक्ति सारी ।
बचाई आन फिर अपने वतन की ।
गयी पर जान तब बाँके सजन की ।
तिरंगे में लिपट वो लौट आए ।
मुझे सम्मान अब कितने दिलाए ।
तिरंगे से लिपट सोया करूंगी ।
उन्हीं की याद में खोया करुँगी ।
बड़ा होकर बने बेटा सिपाही ।
करे वो शत्रु की भारी तबाही ।
यही सपना सदा देखा करुँगी ।
वतन को सौंप कर बेटा मरूँगी ।
अवधेश सक्सेना -16072020
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