मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में एक कविता
विधान- पंक्तियों में
बढ़ते क्रम में मात्राएं
2,4,6,8,10,12,14,16,18
घटते क्रम में मात्राएं
18,16,14,12,10,8,6,4,2
18 मात्राओं वाली पंक्तियां सम तुकांत
शुरू और आखिरी की 2 मात्राओं वाली पंक्तियां सम तुकांत ।
मन के किसी भाव के आते ही उसे लिखने के लिए ये अच्छी विधा है ।
इस विधा में अभ्यास करें, अच्छा लगेगा ।
#प्रियामृतावधेश
#मंज़िल_पाना_है ।
कल
जो था
आज नहीं
अभी जो पास
कल रहेगा नहीं
दुख जाता सुख आता
सुख भी कहाँ ठहर पाता
जीवन सुख दुख का पहिया है
कठिन राह पर बढ़ते जाना है ।
हमें आख़िरी मंज़िल पाना है ।
समय बदलता जगह बदलती
सुई घड़ी की बस चलती
समय नहीं रुकता है
हमसे कहता है
संग-संग चल
गँवा नहीं
कोई
पल
अवधेश सक्सेना- 03072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
No comments:
Post a Comment