सोचो,ऐसा क्यों ?
"काम किसी का नाम कोरोना का"
" कोरोना एक ऐसी बीमारी जिसका इलाज डॉक्टर नहीं पुलिस कर रही है "
"स्कूल, कॉलेज, मंदिर, मस्जिद में कोरोना तेजी से फैलता है जबकि ऑफिस मीटिंग, राजनीतिक मीटिंग, स्वागत समारोह, उद्धाटन, फीता काटने, माला पहनने, ग्रुप फ़ोटो खिंचाने से नहीं फैलता "
" मशीन बिल्कुल सही रिपोर्ट देगी ये मशीन बनाने वाली कम्पनी नहीं कहती, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट इन्हें बिल्कुल सही मानकर रिपोर्ट बनाते हैं "
" मीडिया ( सोशल, इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट) बारीक से बारीक चीजों की तह में जाती है, कोरोना की रिपोर्ट को हरिश्चंद्र की रिपोर्ट मानती है "
" धर्म,अध्यात्म, योग, आयुर्वेद पर सबको अटूट भरोसा है, कोरोना के मामले को छोड़कर "
" कोरोना का इलाज वही कर रहे हैं, जो कह रहे है कि इसका कोई इलाज नहीं है "
" लघु, मध्यम उधोगों के चलने से कोरोना फैल सकता है, निर्माण कार्यों और बड़े उधोगों से नहीं "
" किराना, कपड़ा, फोटो कॉपी, वाहन मरम्मत जैसी छोटी दुकानों से कोरोना फैल सकता है, शराब की दुकानों से नहीं"
" बड़े शहरों के बड़े निजी अस्पतालों को करोड़ों रुपए मदद मिल सकती है, जिला स्तर के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन देने की मशीन नहीं मिल सकती "
" 100 में से 99 बिना इलाज ठीक हो गए इसकी चर्चा नहीं होगी, कोई एक इसके डर से, गलत उपचार से या अन्य बीमारी से मर गया तो उसकी चर्चा जोर शोर से करके कोरोना को कारण बता दिया जाएगा "
अगर सोचोगे और समझोगे कि ऐसा क्यों तो व्यवस्था का कड़वा सच और कुरूप चेहरा स्पष्ट नजर आएगा ।
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