संस्मरण
जा पर कृपा राम की
माँ को जब भी कहीं जाना होता था, मुझे साथ ले जाती थीं, पिता के देहांत के बाद हम दो भाई की परवरिश में माँ दिन रात मेहनत करती थीं । उस दिन माँ को घर के लिए कुछ जरूरी सामान बाजार से लाना था, माँ और मैं बाज़ार गए थे । बड़े भाई अपने काम पर निकल गए थे । घर सूना था लेकिन हम लोगों को घर की कोई चिंता नहीं रहती थी क्योंकि मोहल्ले में कभी चोरी या लूटपाट जैसी घटनाएं तब नहीं होती थीं । हम माँ बेटे सामान लेकर घर लौट रहे थे, करीब 3-4 किलोमीटर पैदल चले थे तो घर पहुँचने की जल्दी थी, मुझे भूख भी लगी थी, उस समय मेरी उम्र लगभग 10 साल थी । घर पहुँचने ही वाले थे कि घर के बाहर भीड़ नजर आयी, थोड़ा और पास पहुँचे तो घर में आग की लपटें और धुँआ देखकर चीख निकल गयी, माँ कह रही थी- है भगवान, ये क्या हो गया । कुछ लोग पानी की बल्टियाँ घर पर डाल रहे थे, हम घर के अंदर की अपनी चीजों को बचाना चाहते थे, घर के अंदर जाने की कोशिश की, मगर लोगों ने रोक लिया । घर के बिल्कुल पास में ही एक अच्छा कुँआ है जिसमें बारह महीने पानी रहता है, पूरा मोहल्ला अपनी रस्सी बाल्टियां लेकर कुँए पर मौजूद था, कुछ लोग पानी खींच रहे थे तो कुछ लोग बाल्टियों से पानी आग पर डाल रहे थे । माँ मुझे हिम्मत बंधा रही थीं । मैं माँ के लिए परेशान था । लगभग एक डेढ़ घण्टे के प्रयास से लोगों ने आग बुझा दी । आग बुझाने वाले आसपास रहने वाले हमारे अधिकांश मुस्लिम भाई थे । सर्व धर्म सम भाव की शिक्षा मुझे बचपन से ही मिली है क्योंकि घर के पास मस्जिद और जैन मंदिर थे तो थोड़ी दूरी पर हिन्दू मंदिर भी थे, घर के पास रहने वालों में सभी मुस्लिम, जबकि मोहल्ले में हिन्दू, जैन, सिख और ईसाई परिवार भी रहते थे, मेरे बचपन के दोस्तों में मुस्लिम, सिख, ईसाई और जैन भी शामिल हैं । आग बुझ गयी थी लेकिन सामान कुछ नहीं बचा था, ईश्वर की कृपा थी कि हम तीनों सुरक्षित थे । दीवालों के ऊपर लकड़ी की म्यार और म्यार के ऊपर लकड़ियां, लकड़ियों के ऊपर पत्थर के पाट रखकर पटोर बनती है, पटोर के पाट और लकड़ियां सब जल चुके थे ।
जो औरत अपने पति के जाने का दुख भुगत चुकी हो, जिन बेटों ने अपने पिता का साया उठने का दुख सह लिया हो, उन्हें अन्य कोई मुसीबत क्या परेशान करेगी । माँ और दोनों बेटे जुट गए अपने घर को बनाने में और कुछ ही दिनों के परिश्रम से घर को फिर से रहने के लिए तैयार कर लिया । वो घर वो कुँआ वो पड़ोसी हमेशा याद रहते हैं । उस घर में माँ के नाम से बनी समिति द्वारा संचालित स्कूल चलता है जिसमें वर्तमान में भी मात्र तीन सौ रुपये प्रति माह फीस ली जाती है और लगभग आधे बच्चों की इससे भी आधी फीस ली जाती है ।
घर में आग लगने की एक और घटना-
अब हम जिस घर में रहते हैं, उसके आसपास कोई मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई नहीं रहता, सभी एक धर्म को मानने वाले लोग हैं ।
3 साल पहले की घटना है, रात को 3 बजे बहुत जोर की आवाज से नींद खुली खिड़की के कांच से बाहर खम्बे पर आग जलती दिखी, लाइट चली गयी थी, मैं, पत्नी, छोटा बेटा और बेटी जाग गए थे, बड़ा बेटा दिल्ली में अपनी upsc सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा था, इसलिये घर पर नहीं था । हम लोग घर की दूसरी मंजिल पर रहते हैं, नीचे ड्राइंग रूम और स्टोर रूम हैं । मैंने बॉलकनी में आकर देखा तो नीचे की गैलरी से धुँआ निकल रहा था, मैं समझ गया कि नीचे भी आग लग चुकी है । मैंने पत्नी और बच्चों को जल्दी से बाहर निकाल कर घर के बाहर बिठाया, नीचे की गैलरी बाहर से खोली तो मीटर के बोर्ड और आस पास आग लगी हुई थी, गैलरी में धुँआ भरा हुआ था, गैलरी के दरवाजे के रोशनदान का कांच निकाला तो धुँआ बाहर निकलना शुरू हुआ । घर से बाहर नल है उसमें लेजम लगाकर पानी से आग बुझाने के लिए लेजम गैलरी के अंदर से लानी थी, बेटा झुका हुआ अंदर से लेजम लेकर आया, बिजली की केबल में करेंट न हो इसका डर था । सामने रहने वाले परिवार का एक लड़का उसके घर से सब देख रहा था, मेरे बालकनी में निकलने के पहले से ही वो उसके घर की बाउंड्री पर अंदर खड़ा था ।
अन्य घरों के लोग घरों के अंदर ही थे । मैंने बिजली विभाग के स्थानीय चाबी घर पर कई बार फोन किया किसी ने फोन नहीं उठाया ।
लेजम से डरते-डरते मैंने पानी से आग बुझाई, केबल खंबे पर भी जल चुकी थी, इसलिए करेंट नहीं था । मैं अपने वाहन से चाबी घर गया तो वहाँ अंदर से ताला लगा था, किसी ने ताला नहीं खोला बहुत आवाजें लगाईं । बाहर से जाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि ये लोग चौराहे पर 5 बजे चाय की दुकान पर चाय पीने जाते हैं । तब 4 बजे थे, मैं वापिस आ गया, धुँआ अभी भी निकल रहा था, बेटे को मैंने पानी डालने से मना कर दिया था । मैंने फिर सावधानी स लेजम को पकड़ कर आग पर पानी डाला । धुँआ कम हो गया, 5 बजे मैं उस चाय की दुकान पर पहुँचा तो बिजली कर्मचारी मिल गए, अपनी समस्या बताई तो वो वोले कि आपको हेल्पलाइन नम्बर पर कम्प्लेंट दर्ज करानी होगी, उनसे हेल्पलाइन नम्बर लेकर कम्प्लेंट दर्ज कराई तो उनका नसेनी वाला वाहन न होने से वो आने को तैयार नहीं थे, मैं निवेदन करके अपने वाहन से उन्हें लाया कि कम से कम केबल का हिस्सा तो घर से दूर कर दें ।
उन्होंने केबल अलग कर दी, खम्बे पर देखा तो उन्होंने बताया कि केबल खम्बे पर जलकर अलग हो चुकी है ।
दूसरे दिन लाइट चालू हो सकी ।
खम्बे के नीचे मैंने देखा तो मुझे एक लकड़ी के टुकड़े में जली हुई मशाल जैसी मिली, किसी ने लंबे बांस में आगे लकड़ी का टुकड़ा बांध कर पॉलीथिन लपेट कर केबल में आग लगाई थी । कोशिश शायद केवल लाइट बंद करने की रही हो, पर घर में आग लगने पर शायद उस शरारती तत्व को और अधिक खुशी मिली हो । ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे कि ये खुशी असली खुशी नहीं होती, असली खुशी तो दूसरों की मदद करने पर मिलती है । ईश्वर की कृपा से हम दूसरों की मदद के लिए हाथ बढ़ा पाते हैं और हमें वो असली खुशी मिलती रहती है ।
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।
अवधेश सक्सेना- 05072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
No comments:
Post a Comment