मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में #कविता
#आँखें
मन
पागल
दीवाना
हो जाता है
उसकी आँखों से
आँखे जब मिल जातीं
सुध बुध सब खो जाती है
सपने क्या क्या दिखते मुझको
आँखे कितनी गहरी होती हैं ।
उड़ती नींदें पर वो सोती हैं ।
मिलन कभी तो होगा उससे
प्यार भरी बातें होंगीं
बिन पलकें झपकाए
आमने सामने
आँखों से ही
शीतल हो
तपता
तन
अवधेश सक्सेना- 24072020
Awadhesh Kumar Saxena
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