#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी
#जल_रहा_था_वो_दिया
मैं बना अच्छा सभी के साथ अच्छा ही किया ।
ज़ख्म दे डाले किसी ने कुछ ने ज़ख्मों को सिया ।
हम झुके आगे सभी के ख़ास इज़्ज़त बख़्शने,
किस कदर बेइज़्ज़ती का पर जहर हमने पिया ।
छोड़ कर हमको अचानक क्यों बना लीं दूरियाँ,
आप तो ऐसे नहीं थे आपने ये क्या किया ।
जिस किसी ने भी वतन के वास्ते जब जान दी,
मर नही सकता कभी भी वो रहे हरदम ज़िया ।
जब तलक मज़बूत थे हम इक जगह पर थे जमे,
पैर उखड़े जो हमारे अब नहीं मिलता ठिया ।
हम वफ़ा करते रहे पर आपने समझा ग़लत,
किस ख़ता का आपने फ़िर इस तरह बदला लिया ।
आँधियाँ चलती रहीं थीं बारिशें होती रहीं,
जो रखा मुंडेर पर था जल रहा था वो दिया ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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