#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी
#चलो_आस_का_एक _दीपक_जलाएँ
चलो आस का एक दीपक जलाएँ ।
घना छा रहा जो अँधेरा भगाएँ ।
इबादत ख़ुदा की करें आज ऐसे,
किसी ग़मज़दा शख़्स को हम हँसाएँ ।
बिका जा रहा है सभी कुछ यहाँ पे,
युवा शक्ति को नींद से अब जगाएँ ।
रहें कैद क्यों ये परिंदे घरों में,
निकालें इन्हें आसमाँ में उढ़ाएँ ।
ख़फ़ा हो गए गर किसी बात पर वो,
झुकें माँग माफ़ी उन्हें हम मनाएँ ।
मुहब्बत भरे दिल में रहता खुदा है,
जुदा प्रेमियों के दिलों को मिलाएँ ।
हवा अग्नि आकाश पानी व पृथ्वी,
इन्हें साफ़ कर फ़र्ज़ अपना निभाएँ ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 16102020
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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