#गीत #अवधेश_के_गीत #अवधेश_की_कविता
#गाँव_आता_याद_मुझको_जब_हुई_तन्हाई_है
गाँव आता याद मुझको जब हुई तन्हाई है ।
शाम है जब ये सुहानी, श्याम बदली छाई है ।
आज फिर यादें पुरानी, अब मुझे भी आ रहीं ।
गाँव का घर और गलियाँ, मन पटल पर छा रहीं ।
खेत की मिट्टी बहुत खुश, अब हवा पुरवाई है ।
गाँव आता याद .....
ताल के वो घाट कहते, फिर नहाने आइए ।
पेड़ पर चढ़कर मुरलिया, फिर सुनाकर जाइए ।
नीम पीपल जाम जामुन, वृक्ष हैं अमराई है ।
गाँव आता याद ......
द्वार पे माँ संग बैठें,पास की सब चाचियां ।
बात बहुओं की चले तो, बोलतीं सब दादियां ।
गाँव की चौपाल पर ही, हो रही सुनवाई है ।
गाँव आता याद ......
लिप रहे आँगन सभी के, पुत रहीं दीवार हैं ।
हाट में है भीड़ कितनी, सज रहे बाजार हैं ।
दीपमालाएं जलीं हैं, फिर दिवाली आई है ।
गाँव आता याद ....
बज रहे घुँघरू छनक छन, थाप ढोलक पर पड़ी ।
नृत्य में तल्लीन भाभी, फिर बहन दर पे खड़ी ।
आ गई बारात कोई, बज रही शहनाई है ।
गाँव आता याद ....
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 23022021
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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