#विषय _:- #मात्रा_भार व गणों की पहचान#
नोट :- मुक्तक-रचनाओं व छंद- रचनाओं के लिये मात्रा भार गणना और सभी आठ गणों की ज्ञान होना रचनाकारों के लिये आवश्यक है।यद्यपि, सिर्फ इसी जानकारी से मुक्तक या छंद लिखना आ जायेगा, ऐसा नहीं है। लेकिन बिना इसके जानकारी के तो सही-सही लिखना तो असम्भव ही समझिये। इसी परिपेक्ष्य को ध्यान में रखकर अधोलिखित जानकारी दी जा रही है। इस आशा के साथ कि कम से कम सभी रचनाकार इसका ध्यान अपने मुक्तक-सृजन में अवश्य देंगें और सभी पंक्तियों में समान मात्रा-भार मुक्तक लिखेंगें। सिर्फ चार पंक्तियों में प्रयास की शुरूआत करें जो आगे आपके अन्य रचनाओं में स्वत: सहायक सिद्ध होगा।B
--------------मात्रा भार------------
भाषा बोलचाल का माध्यम है, अत: सभी नियम जो भी बने उसका आधार भी अक्षरों का सुर ही रहा।हिंदी में अक्षरों को दो ग्रुप में रखा गया है।
(१) स्वर:- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं,अ: और ऋ
नोट:- इसमें अ, इ, उ, ऋ लघु मात्रिक हैं, इनसे ह्रस्व स्वर निकलता है। इन चारों का मात्रा भार 1 होता है। ये किसी व्यंजन से जुड़ते हैं तो व्यंजन के मात्रा भार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। जैसे :- क +इ = कि का मात्रा भार 1 ही होगा। ग+उ= गु म+ऋ=मृ का मात्रा भार 1 ही होगा।
इन चारों(अ इ उ ऋ) को छोड़कर सभी स्वर दीर्घ मात्रिक या गुरू कहलाते हैं। इनका मात्रा भार 2 होता है। ये किसी व्यंजन से जुड़ते हैं तो उसे भी दीर्घ मात्रिक या गुरू कर देते हैं तथा व्यंजन का मात्रा भार 2 हो जाता है। उदाहरण के लिये :- क + ई = की, ल+ऊ = लू , स+ओ= सो ।सभी गुरू व दीर्घ मात्रिक हो गये तथा मात्रा भार हुआ 2।
(२) व्यंजन:- क,ख,ग,घ,......... से लेकर क्ष, त्र, ज्ञ तक सभी व्यंजन हैं।
नोट:-क्ष त्र और ज्ञ को छोड़कर सभी व्यंजन स्वतंत्र रूप से लघु मात्रिक या लघु ही कहलाते हैं और इनका मात्रा भार 1 होता है। क्ष त्र और ज्ञ का मात्रा भार इनके शब्दों में प्रयोग के आधार पर निर्धारित होता है। क्ष त्र और ज्ञ को संयुक्ताक्षर कहते हैं। जिनके शब्दों में प्रयोग के आधार पर मात्रा भार निर्धारित होता है।
उदाहरण देखें:-
क्षमा=1+2=3 क्षरण=1+1+1=3 क्षोभ 2+1=3 क्षमा,क्षरण और क्षोभ का उच्चारण करने में क्ष का ष् नहीं आया, इसलिये इसे लघु मान मात्रा भार 1 लिया गया। ऐसा तभी होगा जब क्ष शब्द का पहला अक्षर हो।अब आगे देखें।
कक्ष= क+क्+ष्+अ=2+1=3, कक्षा= क+क्+ष्+आ =2+2=4 रक्षाम=र+क्+ष्+आ+म=2+2+1=5(जबकि सरसरी तौर पर कक्ष, कक्षा और रक्षाम देखने से 2 3 और 4 मात्रा भार लगेगा जोकि गलत है। इसी प्रकार अब ज्ञ को देखें।
ज्ञ भी उपरोक्त वर्णित क्ष के नियम पर चलेगा। यदि शब्द
ज्ञ से शुरू होगा तो मात्रा भार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन बीच में आयेगा तो अपने बायें या पहले पड़ने वाले अक्षर को दीर्घ या गुरू कर देगा। जैसे:-
ज्ञान= ज्+ञ्+आ+न =2+1=3 क्योंकि अर्ध अक्षर शब्द के शुरू में हो तो उसकी गणना नहीं होती। अर्ध अक्षरों के समायोजन पर मात्रा भार की गणना में इस पर आगे पुन: चर्चा करूँगा।
यज्ञ=य+ज्+ञ=2+1=3
विज्ञान=वि+ज्+ञा+न=2+2+1=5
इसी प्रकार संयुक्ताक्षर श्र और त्र को देखें। यह पहले आने पर लघु मात्रिक रहता है और मात्रा भार 1 लेकिन बाद में आने पर अपने से पहले के अक्षर को दीर्घ मात्रिक यानि गुरू कर देता है। और स्वयं लघु बना रहता है। अगर पहले वाला अक्षर दीर्घ मात्रिक हो तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
पत्र=प+त्+र=2+1=3 त्रिदेव= त्रि+दे+व=1+2+1=4
क्षत्रिय:2+1+1=4 श्रम =1+1=2 परिश्रम =1+2+1+1=5
आश्रम=आ+श्र+म= 2+1+1=4 ।
नोट:- क्षत्रिय में त्र ने क्ष को दीर्घमात्रिक कर दिया और मात्रा भार 2 हो गया जबकि आपने उपर देखा था कि क्ष अक्षर यदि शब्द के शुरू में हो तो लघु और मात्रा भार 1 रहता हैः परिश्रम में श्र ने रि को दीर्घ व गुरू कर दिया और मात्रा भार 2 हो गया। जबकि आश्रम में श्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि पहले का अक्षर 'आ' पहले से ही गुरू या दीर्घ है।
अर्ध अक्षर समायोजन से मात्रा भार पर प्रभाव:-
(1) अर्ध अक्षरों कि कोई गिनती नहीं होती हैं लेकिन शब्दों में प्रयोग के अनुसार इनका प्रभाव अन्य अक्षरों पर पड़ता है।अर्ध अक्षर शब्दों में प्रयोग होने पर हमेशा अपने बायें यानि पहले पड़ने वाले अक्षर को ही प्रभावित करता है। अपने बाद यानि दाहिने पड़ने वाले अक्षर पर कोई प्रभाव नहीं डालता। यही कारण है कि यदि इससे पहले या बायें कोई अक्षर न हो यानि यह स्वयं शब्द के शुरूआत में आये तो उसे नगण्य मानकर चलते है और उसकी गिनती मात्रा भार में नहीं करते। जैसे:-प्यार में प् की गिनती नहीं होगी। मात्रा भार प्+या++र = 0+2+1=3, क्या= 0+2=2 व्याकरण= 0+2+1+1+1=5
नोट:- कुछ अन्य अर्ध अक्षर भी मैं यहीं रख रहा हूँ जिसको लेकर लोग अक्सर परेशान रहते हैं। कारण इसे अलग भाग में समझाना भी है। भले ही वह शुद्धता की दृष्टि से सही हो। लेकिन गलत ही सही मैं अलग तरीका अपनाता हूँ ताकि लोग समझ सकें। मैं तीन शब्द नीचे लिख रहा हूँ
भृगु , भ्रम, भर्ती। तीनों शब्दों में हम र के मात्रा भार को लेकर भ्रमित होते हैं। तीनों के नियम अलग हैं।
भृगु में भ्+ऋ+गु 1+1= 2 मात्रा भार है। कारण अ, इ, उ और ऋ चारों स्वर लघु मात्रिक है तथा ये व्यंजन से जुड़कर उसके मात्रा भार पर कोई फर्क नहीं डालते। इसीलिये भ का मात्रा 1 है और ऋ के जुड़ने के बाद भी 1 ही रहेगा यानि भृ भी 1 होगा। तथा गु तो 1 है ही। तो भृगु = 2 हुआ।
अब आइये भ्रम को समझे। भ्रम=भ् +र +म =0+1+1=2
इसमें भ् अर्ध अक्षर शुरू में आया, इसलिये गिनती नगण्य। बाकी रम गिना जायेगा।
भर्ती = भ+र् +ती = 2+2 =4
कारण अर्ध अक्षर र् बीच में आया और उसने अपने बायें यानि पहले के अक्षर 'भ' को प्रभावित किया। भ लघु मात्रिक है और मात्रा भार 1 लेकिन अर्ध अक्षर 'र्' से प्रभावित होकर भ दीर्घ मात्रिक व गुरू भार वाला बन गया। अत: मात्रा भार गुरू के अनुसार 2 हो गया। 'ती' पहले से ही गुरू है। भर्ती =2+2=4
(2) जैसा कि उपर भर्ती शब्द में आपने देखा कि अर्ध अक्षर बीच में हो तो अपने से पहले वाले यानि बायें वाले अक्षर को प्रभावित करता हैं तथा कभी अपने बाद आने वाले यानि कि दाहिने वाले अक्षर को नहीं। उसके नियम निम्नवत् हैं।
(a) अर्ध अक्षर अपने पहले आने वाले लघु मात्रिक अक्षर को दीर्घ मात्रिक कर देता है। लेकिन अगर पहले वाला अक्षर पहले से ही दीर्घ मात्रिक हो तो कोई प्रभाव नहीं डालता और स्वयं नगण्य हो जाता है। यदि अर्ध अक्षर का भार अपने से पहले वाले शब्द पर न पड़कर अपने बाद वाले शब्द पर पड़ता है तो वह कोई प्रभाव किसी अक्षर पर नहीं डालता और नगण्य हो जाता है।
जैसे:- कर्म और कार्य में क+र्+म =2+1=3 और का+र्+य= 2+0+ 1= 3 यहाँ अर्ध अक्षर 'र्' ने अपने पहले के लघु मात्रिक अक्षर क को दीर्घ मात्रिक कर दिया और मात्रा भार 2 हो गया जबकि कार्य में पहले से दीर्घ मात्रिक 'का' पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाया तथा स्वयं नगण्य हो गया।
अन्य उदाहरण:- शब्द=श+ब्+द= 2+1=3 अच्छा=अ+च्+छा=2+2=4, मिट्टी= मि+ट्+टी=2+2=4, उर्जा=उ+र्+जा=2+2=4 प्रार्थना= प्+रा+र्+थ+ना=0+2+0+1+2=5
(b) आइये अर्ध अक्षरों के मध्य में आने का कुछ अनुपम प्रयोग देखें, जिनमें अर्ध अक्षर अपने पहले या बायें के अक्षर पर बीच में आने पर भी उपरोक्त वर्णित नियमानुसार कोई प्रभाव नहीं डालता। और मात्रा भार गिनती में नगण्य हो जाता है। कई लोग इसे अपवाद समझते हैं जबकि सच्चाई ये है कि बोलने में इन शब्दों में अर्ध अक्षर का भार अपने से पहले यानि बायें के अक्षर पर न पड़कर अपने के बाद यानि दायें के अक्षर पर पड़ता है। और दायें के अक्षरों पर नियमत: प्रभाव माना नहीं जाता।
जैसे:- तुम्हारा, तुम्हें, उन्हें, कन्हैया, जिन्हें, जिन्होंने , कुम्हार।
तुम्हारा=तु+म्हा+रा=1+2+2=5, तुम्हें=तु+म्हें=1+2=3
उन्हें=उ+न्हें=1+2=3
इन सभी में अर्ध अक्षरों का उच्चारण 'ह' के साथ है।
(3) अनुनासिक अक्षरों का मात्रा भार:-
नोट:- रंग, भंग, ढंग,संत, महंत, संभव, अचंभा आदि शब्दों को अलग श्रेणी में रखकर कहीं जगह मात्रा भार बताया जाता है जबकि इसकी ऐसी आवश्यकता है नहीं। दरअसल
जब हम इन शब्दों को बोलते हैं तो पाते हैं कि इन शब्दों के साथ "अं की मात्रा या अर्ध अक्षर न् या म् " जुड़ा रहता है।
तो ऐसे मे यदि अं मात्रा के कारण है तो दीर्घ मात्रिक स्वर होने के कारण जिस व्यंजन से जुड़ेगा उसे दीर्घ मात्रिक यानि गुरू भार कर देगा।और मात्रा भार 2 हो जायेगा। और यदि अर्ध अक्षर न् और म् के कारण है तो अर्ध अक्षर के प्रभाव के कारण बायें या पहले का अक्षर गुरू हो जायेगा।
अत: रंग, भंग, दंग, संत= 2+1=3 महंत= 1+2+1=4 संभव= 2+1+1= 4,अचंभा =1+2+2=5
नोट:- आधुनिक काल में कुछ लोग भंवर, संवर, छांव, दांव, कांव-कांव, ऐसे लिखने लगे हैं जिनका उच्चारण करने पर अर्ध अक्षर का स्वर स्पष्ट रूप से नहीं आता। इन्हें उस श्रेणी न मानकर साधारण तौर पर अनुनासिक शब्दों के आधार पर गणना की जानी चाहिये, जिसकी ध्वनि नाक से निकली प्रतीत होती है।
भंवर, संवर= 1+1+1=3 छांव, कांव=2+1=3
चंद्र बिन्दी वाले शब्द अनुनासिक में आते हैं। जैसे:- बँधकर, चाँद, पाँव, सँभलकर, आदि अनुनासिक शब्दों का मात्रा भार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और इनकी गणना साधारण तरीके से की जाती है। जैसे:- बँधकर=1+1+1+1=4 गँवाकर=1+2+1+1=5
//-------- इति मात्रा-भार --------//
----------#सभी आठ की #गणों की पहचान---------
एक शब्द है "#यमाताराजभानसलगा"_ इसे याद करना पड़ेगा। क्योंकि इसी में आठ गण के नाम और उनके पहचान करने का ढंग छिपा है।
#यगण_ :- सबसे पहले उपरोक्त शब्द का तीन अक्षर लें। तो शब्द होगा "#यमाता" यानि य से यगण पहला गण हुआ। यगण की पहचान "यमाता" पहला अक्षर ह्रस्व स्वर यानि लघु ,दूसरा दीर्घ स्वर यानि गुरु और तीसरा दीर्घस्वर यानि गुरु। यगण गण यानि यमाता 1+2+2 =5 जैसे:- नहाना, दिखाती बचाती, जमाना, सजाना, सलोनी, लड़ाकू, बिताना आदि सभी यगण हैं।
#मगण_:-अब उपरोक्त शब्द "यमाताराजभानसलगा" मे पहला अक्षर 'य' छोड़कर छोड़कर तीन अक्षर लें तो शब्द हुआ "#मातारा" यानि 'म' से मगण दूसरा गण हुआ और पहचान "मातारा" यानि तीनों अक्षर दीर्घ मात्रिक यानि गुरु हुये। मगण गण यानि मातारा- 2+2+2=6 जैसे:- आवारा, याराना, दीवाना, दीवानी, दोबारा, बंजारा, अंगारा,रीझाना, आदि।
#तगण_:-अब उपरोक्त शब्द से दो अक्षर छोड़े
तो शब्द होगा #"ताराज" यानि 'त' से तगण तीसरा गण हुआ। पहचान "ताराज" यानि प्रथम अक्षर गुरु, द्वितीय गुरु और तृतीय अक्षर लघु। तगण गण यानि ताराज- 2+2+1=5 जैसे:- नादान, सामान, श्रृंगार, चालाक, आकाश आदि।
#रगण_:-"यमाताराजभानसलगा" में तीन अक्षरों को छोड़े तो आयेगा "#राजभा" 'रा' यानि 'र' से रगण चौथा गण हुआ। पहचान के लिए "राजभा" यानि गुरु-लघु-गुरु। रगण गण यानि राजभा- 2+1+2 =5 जैसे:- बालिका, राधिका, नाचना, भागना, रूकना, रूठना, कूदना, बीतना, भीगना आदि।
#भगण_:- अब " यमाताराजभानसलगा" पाँच अक्षर छोड़े तो शब्द बनेगा "#भानस" यानि 'भ' से भगण छठाँ गण हुआ और पहचान "भानस" गुरु-लघु-लघु। भगण गण यानि भानस- 2+1+1=4 जैसे:- बालक, नाहक, घातक, पीतल, घूँघट, राहत, सोहन, मोहन, मौलिक, भौतिक आदि
#नगण_:-अब छ: अक्षर छोड़ें तो शब्द बनेगा "#नसल" यानि 'न' से नगण सातवाँ गण हुआ और पहचान "नसल" यानि तीनों लघु भार । नगण गण यानि नसल- 1+1+1=3 जैसे:- महक, कमल, चलन, जलन,पलक, उतर, इतर, अमल आदि,
#सगण_:- अब सात अक्षर छोड़े तो शब्द बनेगा "#सलगा" यानि 'स' से सगण हुआ आठवाँ गण और पहचान लघु-लघु-गुरु।सगण यानि सलगा- 1+1+2=4 जैसे:- कमरा, बकरा, झगड़ा, लड़का , लड़की, गलती, चलती, झुकना, गणना, दरजी, पकड़ूँ , बदलो
अब इसे मापनी में ऐसे लिखा जायेगा। 1 मतलब लघु मात्रिक व 2 मतलब दीर्घ मात्रिक।
यगण:- 122 ,मगण:- 222, तगण:- 221,
रगण:- 212, जगण:- 121, भगण:-211,
नगण :-111, सगण:- 112
पुरुषोत्तम फौजदार 'दादा' आगरा।
9412341733
No comments:
Post a Comment