#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
#दिलनशीं_शाम
दिलनशीं शाम जब उधर न हुई ।
तो इधर इश्क़ की सहर न हुई ।
थी मुहब्बत इसीलिए उन से,
दुश्मनी की बहुत मगर न हुई ।
बे असर ही रहे ख़बर ताज़ी,
बात पूरी सही अगर न हुई ।
दिल हमारा चुरा लिया उसने,
और हमको ज़रा ख़बर न हुई ।
काम करना पड़े बहुत ज़्यादा,
जब हमारी गुज़र बसर न हुई ।
जोर पूरा लगा दिया हमने,
सीख हमको मिली ज़फ़र न हुई ।
हम सँवरते रहे उन्हीं के लिए,
पर उन्ही की कभी नज़र न हुई ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 12112020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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