#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
बात में दम अगर नहीं होता ।
बात का कुछ असर नहीं होता ।
ज़िंदगी भर तलाश करते हम,
प्यार उनसे अगर नहीं होता ।
आपका साथ जो नहीं मिलता,
तो सुहाना सफ़र नहीं होता ।
एक उम्मीद है मिले ठंडक,
रुख हवा का इधर नहीं होता ।
इश्क़ होता नहीं बराबर क्यों,
जो इधर है उधर नहीं होता ।
ख़्वाब से ख़्याल से कभी भी वो,
दूर रश्क- ए-क़मर नहीं होता ।
चोट 'अवधेश' को लगी गहरी
दर्द बिल्कुल मगर नहीं होता ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 19122020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
* रश्क-ए-क़मर =
अति खूबसूरत जिसे देखकर चाँद को ईर्ष्या हो ।
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