#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
हमारे बीच अब पर्दा नहीं है ।
तुम्हारा दिल मगर दिखता नहीं है ।
करे मदहोश महफ़िल में हमें जो,
वो पैमाना अभी छलका नहीं है ।
मुहब्बत हो गई है ज़िंदगी से,
किसी से अब गिला शिकवा नहीं है ।
बहुत ही दूर मंज़िल है हमारी,
जहाँ का रास्ता सीधा नहीं है ।
खुले में क़त्ल वो करता यहाँ पर,
पता सबको मगर चर्चा नहीं है ।
भरा अंदर ख़िलाफ़त का जो ज्वाला,
धधकता खूब है बहता नहीं है ।
दिखाओ लाल आँखें या कटारी,
मगर 'अवधेश' तो डरता नहीं है ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 25032021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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