#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
आजकल वो डरे-डरे क्यूँ हैं ।
जंग को छोड़ भागते क्यूँ हैं ।
काम या भीख भी नहीं मिलती,
मुफ़लिसी की गली पले क्यूँ हैं ।
दूर पल भर नहीं रहे थे कभी,
बीच में आज फ़ासले क्यूँ हैं ।
आँधियाँ तो बदल चुकीं रस्ता,
रात काली दिए बुझे क्यूँ हैं ।
दिल पिघलता नहीं कभी उसका,
ज़ुल्म तुमने मगर सहे क्यूँ हैं ।
हाकिमों ने मुसीबतें लादीं,
हम मगर बोझ से दबे क्यूँ हैं ।
बात 'अवधेश' की नहीं सुनते,
वो न जाने पढ़े लिखे क्यूँ हैं ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 13052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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