#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
जो हजारों सवाल रखते हैं ।
ज़िंदगी वो मुहाल रखते हैं ।
आबुदाना दिखा परिंदों को,
वो फँसाने को ज़ाल रखते हैं ।
मतलबी हैं पड़ी ज़रूरत तो,
आज कुछ ख़ास ख़्याल रखते हैं ।
हर गलत काम की खिलाफ़त को,
खून में हम उबाल रखते हैं ।
मंज़िलों के करीब जाना है,
वो मगर सुस्त चाल रखते हैं ।
पास थे पर मिले नहीं उनसे,
हम ये दिल में मलाल रखते हैं ।
आप 'अवधेश' की सुनो ग़ज़लें,
हम कलेजा निकाल रखते हैं ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 28042021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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