#कुंडलियाँ #अवधेश_की_कुंडलियाँ
1
लाचारी लाचार की, समझे जो इंसान ।
ईश्वर के दरवार में, मिलता उसको मान ।
मिलता उसको मान, मदद जो सबकी करता ।
करता खुलकर दान, पुण्य का घट वो भरता ।
कहते कवि ' अवधेश ', बड़ी है ये बीमारी ।
थामो बढ़कर हाथ, अगर दिखती लाचारी ।
2
आती जिन्हें दया नहीं, करते अत्याचार ।
सहते उनकी ताड़ना, होते जो लाचार ।
होते जो लाचार, करें क्या समझ न पाते ।
हो जाते बीमार, दुखों को गले लगाते ।
कहते कवि 'अवधेश', बुद्धि जिनकी मर जाती ।
मिलता उनको दण्ड, समझ तब उनको आती ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 14052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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