#गीतिका_छंद में एक #गीत
आज कविता एक लिख कर,भाव मन के खोल दूँ ।
खुल न पाए होंठ डर से, बात लिख कर बोल दूँ ।
शब्द भावों से महकती, रस भरी माला बने ।
तूलिका कागज रंगे तो, मेघ भी छाते घने ।
अब हृदय में प्रेयसी के, मैं मधुर रस घोल दूँ ।
शारदे माँ की कृपा से, छंद सुंदर रच रहे ।
पढ़ रहे जो गीत मेरे, खूब उनको जच रहे ।
होंठ पर मुस्कान हो तो, गीत अपने तोल दूँ ।
राष्ट्र संकट में घिरे तो, जोश वीरों में भरूँ ।
ओज नस- नस में बहे, धर्म मेरा मैं करूँ ।
रक्त को स्याही बनाकर, प्राण का मैं मोल दूँ ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 21032021 ( कविता दिवस )
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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