#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
अगर मौसिक़ी से मुहब्बत न होती ।
ग़ज़ल गुनगुनाने की चाहत न होती ।
सुरों को मिलाते सुबह शाम कैसे,
खुदा की जो हम पर इनायत न होती ।
जो बन हमसफ़र तुम अगर साथ चलते,
हमें ज़िंदगी से शिकायत न होती ।
ये इंसाफ़ हमको न मिलता कहीं पर,
जो ऊँची ख़ुदा की अदालत न होती ।
अगर हम भी रहते ज़रा से अकड़ के,
किसी की झगड़ने की हिम्मत न होती ।
बिछड़ कर न जाते अगर दूर वो तो,
नशे की हमारी ये आदत न होती ।
जो 'अवधेश' को तुम समझते सही से,
तुम्हारे भी दिल में ये नफ़रत न होती ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 05042021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
No comments:
Post a Comment