#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
अँधेरी स्याह रातों में, तड़ित जब कौंध जाती है ।
जिसे हम भूलना चाहें, उसी की याद आती है ।
गुजारी जो घड़ी मिलकर, धरोहर अब हमारी वो,
हमारी साँस को नियमित, घड़ी वो ही चलाती है ।
उसे मालूम है जो हैं, हमारी खूबियाँ सारी,
लिखें जो गीत उस पर हम, उन्हें वो गुनगुनाती है ।
अगर हम पर पड़ी मुश्किल, तभी थोड़ी ज़रूरत ही,
दिखा कर सच ज़माने का, हक़ीक़त से मिलाती है ।
हँसी जिसकी बड़ी दौलत, बिके हर बाप जिस खातिर,
विदा के वक्त बाबुल को, वही बेटी रुलाती है ।
थमा आकाश आशा से, कभी उम्मीद मत छोड़ो,
सुनी थी बात बचपन में, बड़ी आशा जगाती है ।
किया 'अवधेश' ने रोशन, जला कर कुछ दिए घी के,
किसी की झोपड़ी देखो, महल सी जगमगाती है ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 27052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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