ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
ग़ज़ल गीत मेरे पढ़ोगे कहाँ ।
बिना खुद छपाये ये छपते कहाँ ।
कभी टाँग खींचें कभी जान दें,
हमें दोस्त ऐसे मिलेंगे कहाँ ।
पता ही नहीं जब सही रास्ता,
चले जा रहे हो भटकते कहाँ ।
कभी चाय पीते रहे साथ में,
मगर वो हमें अब बुलाते कहाँ ।
फ़सल सूखती पर बरसते नहीं,
ये बादल ज़रूरत पे आते कहाँ ।
अभी तो ये सूरज भी निकला नहीं,
चले तुम सवेरे सवेरे कहाँ ।
जो 'अवधेश' कहते सुनो ध्यान से,
दिलों से निकल कर रहोगे कहाँ
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