#गीत #अवधेश_की_कविता #अवधेश_के_गीत
देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।
साँस तक मिलती नहीं है, ख़ास अपने खो रहे ।
रैलियाँ करके चुनावी, संक्रमण फैला दिया ।
भीड़ लाखों की जुटाई, कुंभ भी मैला किया ।
मौत घर-घर बाँट कर वो, चैन से अब सो रहे ।
देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।
आज तक तुमने किया क्या, देश का सौदा किया ।
देश की संपत्ति बेची, लाभ मित्रों को दिया ।
जो तुम्हें सत्ता दिलाते, काम उनके हो रहे ।
देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।
भेजता हर शख़्स लानत, शर्म आनी चाहिए ।
ये महामारी यहाँ से, भाग जानी चाहिए ।
बद्दुआएँ मिल रहीं, क्यों, पाप सिर पर ढो रहे ।
देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।
अस्पतालों में नहीं क्यों, कारगर उपचार है ।
दंभ कितना भी दिखाओ, पर तुम्हारी हार है,
नाम है बदनाम उनका, ज़ुल्म ढाते जो रहे ।
देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।
मान लो कहना हमारा, देश की चिंता करो ।
आग नफ़रत की बुझा कर, प्रेम से झोली भरो ।
जो प्रजा के कष्ट हरता, राज कायम वो रहे ।
देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 05052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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