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परिचय

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Friday, May 28, 2021

ग़ज़ल देखकर ढहती व्यवस्था

 #गीत #अवधेश_की_कविता #अवधेश_के_गीत 


देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।

साँस तक मिलती नहीं है, ख़ास अपने खो रहे ।


रैलियाँ करके चुनावी, संक्रमण फैला दिया ।

भीड़ लाखों की जुटाई, कुंभ भी मैला किया ।

मौत घर-घर बाँट कर वो,  चैन से अब सो रहे ।

देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।


आज तक तुमने किया क्या, देश का सौदा किया ।

देश की संपत्ति बेची, लाभ मित्रों को दिया ।

जो तुम्हें सत्ता दिलाते, काम उनके हो रहे ।

देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।


भेजता हर शख़्स लानत, शर्म आनी चाहिए ।

ये महामारी यहाँ से, भाग जानी चाहिए ।

बद्दुआएँ मिल रहीं, क्यों, पाप सिर पर ढो रहे ।

देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।


अस्पतालों में नहीं क्यों, कारगर उपचार है ।

दंभ कितना भी दिखाओ, पर तुम्हारी हार है,

नाम है बदनाम उनका, ज़ुल्म ढाते जो रहे ।

देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।


मान लो कहना हमारा, देश की चिंता करो ।

आग नफ़रत की बुझा कर, प्रेम से झोली भरो ।

जो प्रजा के कष्ट हरता, राज कायम वो रहे ।

देख कर ढहती व्यवस्था , देश वासी रो रहे ।


इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 05052021

शिवपुरी, मध्य प्रदेश

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