#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
हमें देख वो मुस्कुराने लगे हैं ।
जमीं वर्फ़ शायद हटाने लगे हैं ।
सताते बहुत थे कभी हम उन्हें पर,
वो कड़वी सी यादें भुलाने लगे हैं ।
हमें जो कभी कुछ समझते नहीं थे,
हमारी ग़ज़ल गुनगुनाने लगे हैं ।
सभी हसरतें रह गईं फिर अधूरी,
वो आए मिले और जाने लगे हैं ।
कभी पास आकर जो पुचकारते थे,
वही दूर जाकर सताने लगे हैं ।
ये मासूम बच्चे जो गोदी में आए,
हमें खिलखिलाकर हँसाने लगे हैं ।
जिन्हें खुश रखा था सभी कुछ गँवा कर,
वो बच्चे ही हमको रुलाने लगे हैं ।
उन्हें क्या पता हम कहाँ तक गए थे,
हमें चाँद छूने जमाने लगे हैं ।
यहाँ रूठकर जो बिना बात बैठे,
ये 'अवधेश' उनको मनाने लगे हैं ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 010421
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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