#अवधेश_की_कविता #इन_दिनों_जो_हो_रहा_है
इन दिनों जो हो रहा है, वो नहीं पहले हुआ है ।
बद्दुआएँ फल रही हैं, बेअसर लगती दुआ है ।
आदमी ही आदमी से, आज कितना डर रहे हैं ।
साँस के व्यापार वाले, पाप से घर भर रहे हैं ।
काम धंधे छिन गए सब, भीख में रोटी मिली है ।
पापियों के कारनामे, देखकर दुनिया हिली है ।
बस दवा उपचार में ही, बिक गया घर खेत सोना ।
बच गए गंगा नहाई, अब चलो नव बीज बोना ।
गाँव से आये शहर में, जान अपनी जो बचाने ।
अस्पतालों में पलंग भी, हैं नहीं उनको लिटाने ।
भाग्य से उपचार अच्छा, मिल गया तो बच गए वो ।
देर से पहुँचे यहाँ जो, कुछ नया ही रच गए वो ।
वृद्ध बच्चो नौजवानो, सब रखो अब सावधानी ।
बस यहाँ वो ही बचेगा, बात जिसने जान मानी ।
दूर दो गज पर रहे जो , मास्क पहने हाथ धोए ।
भीड़ से जो दूर रहता, चैन की वो नींद सोए ।
माँ बहन भाई पिता जी, पत्नि या पति संक्रमित हों ।
परिजनों को हो मुसीबत, संक्रमित पर वो कुपित हों ।
नोंचते मृत देह को भी, गिद्ध बनकर आदमी ही ।
बच रहा अंतिम क्रिया से, पाप सनकर आदमी ही ।
आपदा अवसर बनाते, कर रहे व्यापार काला ।
राजनेता लोक सेवक, खोलते खुद बंद ताला ।
माफिया हर क्षेत्र के ही, आय दुगनी कर रहे हैं ।
लुट गया हर नागरिक पर, वो तिजोरी भर रहे हैं ।
रोग से लड़ता वही तन, बढ़ रही हो शक्ति जिसकी ।
ये महामारी मिटेगी, जब लगे वैक्सीन इसकी ।
देश है मुश्किल घड़ी में, देशवासी डर रहे हैं ।
इस समय 'अवधेश' भी तो, कष्ट सबके हर रहे हैं ।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 26052021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश
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