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परिचय

 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., ...

Sunday, July 26, 2020

#प्रियामृतावधेश #सच

#प्रियामृतावधेश
#सच

बच
पाया 
नहीं यहाँ
कोई उससे
हो चाहे गरीब 
मंत्री या फिर राजा 
भेद नहीं करता इनमें
लिंग जाति धर्म भाषा क्षेत्र  
सब एक जैसे उसकी नज़र में ।
शाख पत्ते जैसे हों  शज़र में  ।
सृजन पालन करता जो यहाँ
वही  संहार  का  कारण
प्रकृति के अपने नियम
इन्हीं से चलता सब
मान लो इन्हें
रह लो खुश
बोलो
सच

अवधेश सक्सेना-26072020

Saturday, July 25, 2020

#अवधेश_की_ग़ज़ल #आपको_मुझ_से_कहो_कोई_शिकवा_तो_नहीं

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल 
#आपको_मुझ_से_कहो_कोई_शिकवा_तो_नहीं ।

आपको मुझ से कहो कोई शिकवा तो नहीं ।
ज़िंदगी कर दी हवाले चाहिए ज़्यादा तो नहीं ।

अब तुम्हारी ही तमन्ना में गुजरते रात दिन,
माँग लूँ तुमको कोई टूटता तारा तो नहीं ।

खूबसूरत वो बला की हो गया उस पे फिदा,
वो कभी मेरी बनेगी कहीं सपना तो नहीं ।

जान हाज़िर है हमारी बोल दो क्या चाहिए,
जो किया वो न निभाया ऐसा वादा तो नहीं ।

ख़्वाहिशें उसकी अजब हैं हो रहीं पूरी मगर,
आदमी है आम जैसा वो निराला तो नहीं ।

इक झलक अपनी दिखाकर वो कहीं फिर खो गया,
आसमाँ में जो चमकता वो सितारा तो नहीं ।

दिल बड़ा कमजोर है ये दे दिया तुमको मगर,
खेल कर तोड़ते हो तुम ये खिलौना तो नहीं ।

अवधेश सक्सेना-25072020

Friday, July 24, 2020

#अवधेश_की_ग़ज़ल #बेवफाओं_से_प्यार_कौन_करे

#अवधेश_की_ग़ज़ल
#बेवफाओं_से_प्यार_कौन_करे

बेवफाओं से प्यार कौन करे ।
ज़िंदगी शर्मशार कौन करे ।

आप कहते जो वो नहीं करते,
आपका एतवार कौन करे ।

इश्क़ जब भी किया मिला धोखा,
फ़िर इसे बार-बार कौन करे ।

अब शिकारी कहीं नहीं मिलते,
शेरनी का शिकार कौन करे ।

आग दिल की लगी जला देगी,
आपको होशियार कौन करे ।

जब बुलाया उन्हें नहीं आए,
उनका अब इंतज़ार कौन करे ।

वो नेता अब नज़र नहीं आते,
जंग अब आरपार कौन करे ।

अवधेश सक्सेना- 25072020
शिवपुरी म प्र

दोहे

दोहे

कितनी सुंदर वाटिका, खिलते सुंदर फूल ।
शूल हृदय के सब मिटें, चुभें नहीं अब शूल ।

भिन्न भाषा धर्म यहाँ, मिल कर बनता देश ।
देश बाग महका करे, कहे यही अवधेश ।

अवधेश सक्सेना- 19072020
💐💐🙏🙏

मुक्तक

#मुक्तक #क़तआ #शायरी 

खूबसूरत है बनाती रूह को ये शायरी ।
दूर रहती शायरों से हर हमेशा कायरी ।
हो वतन की बात या फ़िर प्यार वाले गीत हों,
हल लिखे मसले मिलें मेरी पढ़ो तुम डायरी ।

अवधेश सक्सेना-20072020

मनमोहन छंद पल पल में पग

#मनमोहन छंद
(विधान- 14 मात्राओं के चार चरण
8, 6 पर यति
अंत में नगण अनिवार्य
दो दो चरण या चारों चरण तुकांत ।)
1
पल पल में पग, रहे पलट ।
समस्या नहीं, रही सुलट ।
मन में होती, कसक-मसक ।
जाती उनकी, नहीं ठसक ।

2
चमके सोना, मिले तपन ।
सुगंध बिखरे, चले पवन ।
मिलकर भड़के, पवन अगन ।
सावन आया, जले वदन ।

3
आहुति डालो, करो हवन ।
सत्य सदा ही, करो कथन ।
मीठे बोलो, सदा वचन ।
कर लो अच्छे, यहाँ जतन ।

4
फूल खिले हैं, चमन-चमन ।
जग में आगे, रहे वतन ।
हर तरफा हो, चैन अमन ।
नहीं किसी का, करो दमन ।

5
वीरों को हम, करें नमन ।
गाएँ सब मिल, जन गण मन ।
कभी नहीं हो, अधोगमन ।
पीड़ाओं का, करो शमन ।

अवधेश सक्सेना-20072020

मनमोहन छंद जीतेंगे हम बड़ा समर

#मनमोहन_छंद
#जीतेंगे_हम_बड़ा_समर
1
अखबारों में, छपी खबर ।
चर्चा चलती, नगर नगर ।
कोरोना की, चली लहर ।
कैसा बरपा, रहा कहर ।
2
ताला बंदी, है घर घर ।
सब कुछ ही अब, गया ठहर ।
व्यवस्था हुई, है जर-जर ।
यहाँ हवा में, घुला जहर ।
3
पानी अंदर, रहे मगर ।
इसमें जाना, नहीं उतर ।
दुनिया काँपी, है थर थर ।
भीड़ हुई सब, तितर बितर ।
4
बम बम भोले, हे हर हर ।
नाम तुम्हारा, करे निडर ।
हमने है अब, रखा सबर ।
जीतेंगे हम, बड़ा समर ।

अवधेश सक्सेना-21072020

विजात छंद प्रथम पूजा विनायक की

#विजाता_छंद
1222 1222

प्रथम पूजा विनायक की ।
करें हम लोक नायक की ।
गजानन भक्ति जो करते ।
जगत में वो नहीं डरते । 
धतूरा भाँग खाते जो ।
सदा धूनी रमाते जो ।
करें अभिषेक जल से हम ।
रहें भोले शरण हर दम ।
जिन्हें नंदी घुमाते हैं ।
वही शंकर कहाते हैं ।
हमें किस बात का डर है ।
हमारे साथ शिव हर है ।
शिवा का शेर वाहन है ।
शिवा रक्षक गजानन है ।
हिमालय की दुलारी है ।
शिवा माता हमारी है ।
रहें कैलाश पर भोले ।
शिवा से प्रेम से बोले ।
हमारे जो  सहारे हैं ।
हमें सब भक्त प्यारे हैं ।
महीना है बड़ा पावन ।
जिसे कहते यहाँ सावन ।
चढ़ाएं वेलपत्री हम  ।
जपें भोले कहें बम बम ।
अवधेश सक्सेना- 22072020

#विजात छंद करो पूजा गजानन की

#विजात_छंद 
#करो_पूजा_गजानन_की

1
चतुर्थी शुक्ल सावन की ।
करो पूजा गजानन की ।
हरी दूवा चढ़ाएँगे ।
गजानन को मनाएँगे ।

2
मिलेगा ज्ञान पढ़ने से ।
बढ़ेगा मान लिखने से ।
पढ़ो कुंटल किलो लिखना ।
कभी सस्ते नहीं बिकना ।

3
प्रशंसा चाहते हैं सब ।
बुरा झट मानते हैं सब ।
प्रशंसा भी करेंगे हम ।
बुराई से लड़ेंगे हम ।

4
खुला है आसमाँ ऊपर ।
उड़ो तुम पंख फैलाकर ।
सफलता के शिखर पर हो ।
बड़ों के पाँव पर सर हो ।

5
गले सबको लगाएंगे ।
सही बातें सिखाएंगे ।
सभी में राम रहते हैं ।
यही अवधेश कहते हैं ।

अवधेश सक्सेना- 24072020

#प्रियामृतावधेश #आंखें

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में #कविता 

#आँखें

मन
पागल
दीवाना 
हो जाता है
उसकी आँखों से
आँखे जब मिल जातीं
सुध बुध सब खो जाती है
सपने क्या क्या दिखते मुझको
आँखे   कितनी  गहरी  होती  हैं ।
उड़ती   नींदें  पर  वो   सोती  हैं  ।
मिलन कभी तो होगा उससे 
प्यार भरी बातें होंगीं
बिन पलकें झपकाए 
आमने सामने 
आँखों से ही
शीतल हो
तपता
तन

अवधेश सक्सेना- 24072020
Awadhesh Kumar Saxena

Saturday, July 18, 2020

ग़ज़ल सोच से नफरत निकल कर जो गई

सोच से नफ़रत निकल कर जो गई ।
पाप तब गंगा हमारे धो गई ।

जागना था रात को भी साथ में,
नींद उसको आ गई वो सो गई ।

आपके इस नूर ने जादू किया,
रूह मेरी आप में ही खो गई ।

जब ज़रा घूंघट उठाया आपने,
रोशनी चारों तरफ़ तब हो गई ।

ये सियासत ही हुकूमत के लिए,
बीज नफ़रत के यहाँ पर बो गई ।

अवधेश सक्सेना -18072020

Thursday, July 16, 2020

प्रियामृतावधेश पर टीप


#प्रियामृतावधेश #गरीब

मेरीमौलिक विधा #प्रियामृतावधेश  में कविता 
विधान
मात्राएँ पहली से नौंवी पंक्ति तक बढ़ते क्रम में
2,4,6,8,10,12,14,16,18- 
दसवीं से अठाहरवीं पंक्ति तक घटते क्रम में
18,16,14,12,10,8,6,4,2
पहली और अठाहरवीं पंक्ति तुकांत
नौंवीं और दसवीं पंक्ति तुकांत

#गरीब 

जो 
धरती
का टुकड़ा 
जोत कर यहाँ
रोटी  खाता था
उजाड़ा पीटा उसे
मर गया वो पी के जहर 
छोड़ रोते बिलखते बच्चे
इस व्यवस्था को बदलना होगा ।
राज अपने हाथ करना होगा ।
गरीब को दो गज जमीं नहीं
अमीर को आकाश मुफ़्त
सत्ताईस मंजिल मिले 
रोटी कमाना गलत
धन कमाना सही
उठो गरीबो
पहचानो
तुम क्या
हो ।

अवधेश सक्सेना- 17072020

मुक्तक

मुक्तक 
उसी की अब तमन्ना  है  कभी जिसने रुलाया है,
उसी के नाम पर हमने नया इक घर बनाया है ।
मिली है हर खुशी हमको मगर उसकी कमी खलती,
उसे देने सभी खुशियाँ जहाँ हमने बसाया है ।

अवधेश सक्सेना

संस्मरण जा पर कृपा राम की

संस्मरण
जा पर कृपा की राम की
बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, सात दिन हो गए थे ।
आधा अगस्त निकल चुका था, कॉलेज में क्लास नहीं लग रहीं थीं, मेरी क्लास का अच्छा दोस्त अभी कुछ देर पहले ही मेरे पास बैठकर कुछ पढ़ाई की कुछ राजनीति की बातें करके गया था, कॉलेज में दूसरा साल था और इसी दोस्त ने ग्वालियर में अपने घर के पास मुझे एक मकान में कमरा किराये से दिलाया था, माँ को साथ में रखना था इसलिए हॉस्टल में न रहकर किराए के मकान में रहना जरूरी था । माँ खाना बना देती थीं और मैं अपनी पढ़ाई करता रहता था । सरकारी स्कूल से  हिंदी मीडियम में हायर सेकेंडरी पास करने के बाद इंजीनियरिंग की इंग्लिश में मोटी मोटी किताबें पढ़ना और समझना बढ़ा मुश्किल पड़ रहा था, लेकिन मेहनत का प्रतिफल ये था कि प्रथम वर्ष में 60 छात्रों में से 7 छात्र ही ऐसे थे जो सभी विषयों में पास हुए थे, जिनमें एक नाम मेरा भी था । किराए का कमरा बहुत अच्छा था, क्योंकि दूसरी मंजिल पर था और कमरे के बाहर खुली छत भी थी, मकान के पिछले हिस्से में बना था जिसमें पहुंचने के लिए पत्थर की  सीढ़ियाँ थीं, पूरा मकान ही पत्थर का बना था जो लगभग 50 साल पुराना बना होगा ।
माताजी ने आज हर छठ का व्रत किया था, ये व्रत बेटे के लिए माँ करती हैं । मेरे लिए तोरई की सब्जी और रोटी बनाईं थीं, स्टोव पर तवा रखकर गरम- गरम रोटियाँ बनाकर मुझे खिला रहीं थीं और मैं पास में बैठकर उनसे  कुछ बातें करते हुए  खाना खा रहा था । छत की तरफ खुलने वाले दरवाजे के पास खाना बनाने की जगह बना ली थी, जबकि सीढ़ियों से चढ़कर जिस दरवाजे से कमरे में पहुंचते थे उस तरफ दीवाल में बनी एक खुली अलमारी में मेरी किताबें और कुछ सामान रखा था, यहीं पास में एक छोटी टेबल और एक कुर्सी रखे थे जिस पर बैठकर मैं पढ़ता था । अलमारी के पास ही दीवाल पर एक हनुमान जी का कैलेंडर टंगा था, पढ़ते समय कैलेंडर पर नज़र जाती थी तो  पढ़ाई में सफलता की पूरी उम्मीद हो जाती थी ।
खाना खाकर में उठा और  अपनी किताबों की अलमारी के पास आया तो अचानक दीवाल हिलती हुई दिखी, माताजी की तरफ देखा, कुछ समझ पाता इससे पहले ही पूरा कमरा मेरी आँखों के सामने ही भरभराकर गिर गया और माताजी भी उसके मलबे में दब गईं । मैं जोर से चीखा लेकिन आवाज नहीं निकली । मैं जहाँ खड़ा था वो हिस्सा और एक दीवाल और सीढ़ियों और अलमारी से लगा हिस्सा नहीं गिरा था, मैंने हनुमानजी का कैलेंडर देखा, मन ही मन प्रार्थना की कि माताजी को बचा लो भगवान और सीढ़ियों से उतरकर मलबे के ढेर पर उस जगह जाकर माताजी को निकालने के लिए मलबा हटाने लगा, पानी बरस रहा था, मकान गिरने की आवाज से आसपास भीड़ लग गयी । लोग मुझे मलबे के ढेर पर देखकर मुझे हटने के लिए कह रहे थे, क्योंकि वो बची हुई दीवाल किसी भी क्षण गिर सकती थी, लेकिन मैं तो अपनी माँ को ढूंढ रहा था, मलबा हटाते=हटाते मुझे माँ का चेहरा दिख गया, मेरी जान में जान आयी, माँ ने मुझे देखा तो उन्हें भी तसल्ली हो गयी कि मैं दबा नहीं हूँ । अब मैं उनके ऊपर से मलबा हटा रहा था, लोग चिल्ला रहे थे, उन लोगों में मेरे उस खास दोस्त के चाचा और बड़े भाई भी थे, जो मुझे वहाँ से हटने के लिए कह रहे थे, सबको उस गिरती हुई दीवाल का डर था । मलबा हटाने पर भी माँ का आधा हिस्सा एक बड़े पत्थर छत की पटिया के नीचे दबा था, जिसे मैं नहीं हटा सकता था, मैंने दोस्त के चाचा और बड़े भाई को बोला कि माँ को निकाल लो, वो समझ गए, वो दोनों और तीन चार और लोग हिम्मत करके वहाँ आ गए और उस पत्थर को हटाया, मेरे दोस्त के बड़े भाई बिना देर किए माँ को हाथों में उठाकर मलबे के ढेर से नीचे उतर गए मैं भी उन लोगों के साथ नीचे उतर गया । हम लोग जैसे ही वहाँ से हटे वो दीवाल जो शायद इसी इंतजार में रुकी थी, भरभराकर गिर पड़ी । राम भक्त हनुमान से की गई प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती ।
पूरी भीड़ माँ को बचाने के लिए हर जतन करने को साथ में दौड़ रही थी अस्पताल पहुंचने के लिए मुख्य मार्ग पर पहुंचकर कोई साधन जरूरी था, एक मिलिट्री का ट्रक जा रहा था, उसे भीड़ ने रोक कर सारी बात बताई तो ट्रक वालों ने माँ को  अस्पताल ले जाने की बात मान ली, ट्रक में पीछे ही माँ को लेकर जितने लोग  बैठ सके बैठ गए लेकिन परीक्षा अभी भी बहुत कठिन थी, ट्रक स्टार्ट नहीं हुआ, ट्रक ड्राइवर और मिलिट्री वाले परेशान हो गए, साथ में आये लोगों ने कहा कि हम धक्का लगा देते हैं, और भीड़ धक्का लगाकर ट्रक को अस्पताल तक ले आयी ।
कमलाराजा अस्पताल में बहुत जल्दी इलाज शुरू हुआ, चेहरे पर, हाथों में, पैरों में सभी जगह चोटें थीं, कुल 72 टांके लगे थे, शिवपुरी से बड़े भाई खबर मिलते ही आ गए । कुछ दिनों अस्पताल में रहने के बाद छुट्टी मिलने पर भाईसाहब माँ को शिवपुरी ले गए । मेरे दोस्त का पूरा परिवार मुझे अपना ही मानता था, दोस्त की माँ मेरा बहुत खयाल रखतीं थीं, कुछ दिनों तक उन्हीं के यहाँ रहा, मेरी किताबें, कपड़े, बर्तन कुछ भी नहीं बचा था । उस दिन मैं केवल पजामा और बनियान पहने रह गया था । पुराने मकान के पास से नाला निकला था जो लगातार बारिश होने से मकान की नींव को कमजोर करता रहता था, जिसके कारण मकान गिर गया था ।
माँ की धार्मिक आस्थाओं और भगवान पर भरोसे ने उन्हें इतने भयंकर हादसे में भी सुरक्षित रखा और भगवान की कृपा के साथ माँ के  सुरक्षा चक्र से मुझे तो खरोच भी नहीं आई थी ।
माँ पूर्ण स्वस्थ हो गईं लेकिन मुझे हॉस्टल में रहना पड़ा ।
मैं अपने इस सबसे खास दोस्त और इसके परिवार के साथ उन अंजान चेहरों को भी कभी भुला नहीं सकता जिन्होंने मेरी मदद की है ।
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।

अवधेश सक्सेना- 25072020

बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है । सुमेरु छंद

सुमेरु छंद
122 212, 221 22

बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।

उठाती पीठ पे चींटी बजन है ।
बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।

समा लेता नदी पूरी समंदर ।
नचे झूमे  करे मस्ती कलंदर ।

पिया की याद फिर मुझको सताती ।
बदन में आग फिर आकर लगाती ।

महीना आ गया सावन सुहाना ।
जवानी चाहती उस पर लुटाना ।

मिलन की आस में अँखिया खुलीं हैं ।
शयन सैया बिछी चादर धुलीं हैं ।

बसे जब से पिया परदेश जाकर ।
तसल्ली कर रही संदेश पाकर ।

टलेगा युद्व तो छुट्टी मिलेगी ।
चमन में फिर कली जूही खिलेगी ।

अचानक छिड़ गया जब युद्ध भारी ।
लड़े जमकर लगा जब शक्ति सारी ।

बचाई आन फिर अपने वतन की ।
गयी पर जान तब बाँके सजन की ।

तिरंगे में लिपट वो  लौट आए ।
मुझे सम्मान अब कितने दिलाए ।

तिरंगे से लिपट सोया करूंगी ।
उन्हीं की याद में खोया करुँगी ।

बड़ा होकर बने बेटा सिपाही ।
करे वो  शत्रु की भारी तबाही ।

यही सपना सदा देखा करुँगी ।
वतन को सौंप कर बेटा मरूँगी ।

अवधेश सक्सेना -16072020

Saturday, July 11, 2020

प्रेतात्मा को रोना पड़ेगा


प्रेतात्मा को रोना पड़ेगा ।
कहानी

गाँव के बाहर एक पुरानी हवेली थी, उस हवेली के वारे में तरह तरह की चर्चाएं चलती रहती थीं, गाँव के लोगों में ये धारणा बन चुकी थी कि हवेली में कोई प्रेतात्मा रहती है, कोई भी उस हवेली में नहीं जाता था, शाम के बाद या रात को तो लोग उस रास्ते पर ही नहीं जाते थे । किसी आदमी को अगर कोई बीमारी होती तो ये मान लेते थे कि ये जरूर उस हवेली के रास्ते पर गया होगा । तीन चार हत्याएं भी उस हवेली के बाहर हो चुकीं थीं ।
प्रशासन और पुलिस के लोग भी इन चर्चाओं से प्रभावित होकर उस हवेली से दूरी बनाकर चलते थे ।
गाँव का जमींदार लोगों को सचेत करता रहता था कि उस हवेली की तरफ कोई नहीं जाएगा, लोगों के दिमाग में हमेशा प्रेतात्मा का डर बैठा रहता था ।  कुछ हिम्मत वाले युवा कभी कोशिश भी करते थे, प्रेतात्मा की हकीकत जानने की तो उन्हें डांट डपट कर वहाँ जाने से रोक दिया जाता था ।
एक बार एक साहसी थानेदार वहाँ के थाने में आया,हवेली की चर्चाएं सुनकर उसे आश्चर्य हुआ कि यहाँ के लोग भूत प्रेत वाली बातों पर विश्वास करते हैं । गाँव के जमींदार के आमंत्रण पर जब वो उनके महल जैसे बने हुए आवास पर पहुंचा तो जमींदार ने अच्छी आव भगत की, चाय नाश्ता कराया, जमींदार ने भी हवेली से जुड़े डरावने किस्से सुनाए ।  उसने सोचा कि वो वहाँ जाकर देखेगा, उसने साथी पुलिस वालों से इस वारे में बात की तो सभी ने वही डरावनी कहानियां सुना दीं और सभी ने वहाँ जाने से साफ मना कर दिया । उससे भी कहा कि वो भी वहाँ जाने का विचार मन से निकाल दे । वो एक साहसी नौजवान था, जितना उसे रोका जा रहा था उतना ही उसका जाने का मन हो रहा था । उसका बचपन का दोस्त पास के शहर में पत्रकारिता करता था । किसी दुर्घटना के सिलसिले में वो उस गाँव के थाने में आया था, दोनों दोस्तों में बातें हुईं, पत्रकार दोस्त को थानेदार ने रोक लिया कि आज ठहर जाओ, कल चले जाना । बातों बातों में हवेली की बात थानेदार ने पत्रकार को बताई । पत्रकार भी उसी की तरह साहसी था और खोजी तो था ही, पत्रकारिता में खोजी लोग ही सफल होते हैं । दोनों मित्रों ने हवेली की हकीकत पता करने का निश्चय कर लिया । दोनों दोस्त उसी रात उस हवेली पर पहुंच गए । गेट पर पुराना जंग लगा ताला लगा था । टॉर्च की रोशनी में बाउंड्री के बाहर से चक्कर लगाते हुए वो लोग एक ऐसी जगह पहुंचे जहाँ बाउंड्री की दीवाल टूटी थी और लकड़ियों से गेट जैसा बना था, वहाँ से अंदर देखा तो अंदर कुछ रोशनी नजर आयी, कुछ सामान खिसकने जैसी आवाजें भी आ रहीं थीं । उन दोनों ने लकड़ी के उस गेट के पास थोड़ी सी जगह में से अंदर जाने के लिए जैसे ही अंदर पैर रखे एक काली बिल्ली उनके बिल्कुल पास से निकल गयी । धीरे-धीरे वो आगे बढ़े और हवेली के अंदर पहुँच गए, रोशनी की तरफ बढ़े तो आवाजें साफ सुनाई देने लगीं, कुछ खुसुर-पुसुर भी सुनाई दी, जैसे कोई बात कर रहा हो । वो अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ रहे थे, अचानक एक चमगादड़ फड़फड़ाती हुई उनके सिर के ऊपर से निकल गई ।
रोशनी वाले कमरे की तरफ पहुँचे तो दरवाजे की चरचराहट हुई और दरवाजे के पास किसी की परछाईं नजर आयी, वो दोनों सोच में पड़ गए कि इतनी रात को यहाँ कौन हो सकता है । वो छुप कर देखने लगे ।  उन्हें आभास हो गया कि यहाँ कुछ लोग मौजूद हैं ।
थानेदार ये देखकर चौंक गया कि जो जमींदार कुछ दिन पहले उससे इस हवेली में जाने से मना कर रहा था वो खुद यहाँ पर है और किसी अन्य व्यक्ति से कुछ बात कर रहा है । अब वो दोनों ऐसी जगह छुप गए जहाँ से उन्हें अंदर की गतिविधि भी दिखने लगी और उन्हें कोई देख भी नहीं सकता था । उन्होंने देखा कि कुछ लोग छोटे छोटे पॉलीथिन के पाउच में सफेद पाउडर भर रहे हैं । उसे जानकारी मिली थी कि नशे के पॉवडर की सप्लाय इसी इलाके से होती है । उसने बहुत छानबीन की लेकिन कुछ पता नहीं चल रहा था, अब सब कुछ साफ साफ दिख रहा था । दोनों दोस्तों को सारा माजरा समझ में आ गया ।  थानेदार ने रिवॉल्वर निकाली और जल्दी से उन लोगों के सामने पहुंचकर जमींदार पर तान दी । नशे के अवैध कारोबार के जुर्म में जमींदार और उसके आदमियों को गिरफ्तार करके थानेदार थाने में ले आया । क्रमशः....

(कहानी भाग-2)
जमींदार ने थानेदार से विनम्र बनते हुए कुछ बात करने को कहा, थानेदार ने कहा कि बोलो क्या बात करना चाहते हो, उसने कहा कि थानेदार साहब आप तो हुकुम करो आपको क्या चाहिए, जो आप कहोगे आपकी सेवा में हाजिर कर देंगे । हम से मिलकर चलो मालामाल हो जाओगे, आपके इस दोस्त को भी मुँह मांगा इनाम मिल जाएगा । थानेदार ने जमींदार के गाल पर तमांचा जड़ दिया और बोला कि मैं बिकने वाला थानेदार नहीं हूँ, पत्रकार दोस्त जो अपनी डायरी में घटना का विवरण लिख रहा था, जमींदार से बोला कि तुम्हारा खेल खत्म हो गया जमींदार जी मेरे इस दोस्त की ईमानदारी को मैं बचपन से जानता हूँ, स्कूल की फुटबॉल टीम में सिलेक्शन के लिए जब खेल शिक्षक ने एक किलो घी मँगाया था तो इसने टीचर में ही चांटा मार दिया था । कल के अखबार में तुम्हारे इन काले कारनामों की खबर दुनिया पढ़ेगी । थानेदार ने जमींदार को उसके आदमियों के साथ ही लॉक अप में बंद कर दिया । थाने का हवलदार थानेदार के पास आकर बोला कि साहब ये जमींदार ज्यादा बोलता नहीं है, पर है बहुत खतरनाक, इसकी बात न मानने वाले थानेदार इस थाने में टिक नहीं पाते । इतने में फोन की घण्टी बजी, थानेदार ने फोन उठाया, उधर से आदेशात्मक स्वर में  आवाज आई, थानेदार ने जय हिंद बोलकर अभिवादन किया, फोन करने वाले ने बोला कि तुमने जिस जमींदार को पकड़ा है वो नेताजी का खास आदमी है, उस को तुरंत छोड़ दो नहीं तो हम सब मुश्किल में पड़ जाएंगे । थानेदार बोला लेकिन सर, सर उधर से आवाज आई कि मैं कुछ नहीं सुनूँगा जो कहा है वो करो और फोन कट गया । थानेदार को अपना अपमान लगा और तिलमिला उठा, गुस्से से भर गया और लॉक अप में पहुंचकर जमींदार और उसके आदमियों को लात घूंसों से मारते हुए अपना गुस्सा शांत किया । हवलदार को बुलाकर प्रकरण तैयार करने की कार्यवाही करने लगा । हवलदार ने फिर निवेदन की मुद्रा में समझाने की कोशिश की कि साहब मान जाओ, ठीक रहेगा । थानेदार ने हवलदार को डपट दिया कि मैं जो कह रहा हूँ करो ।
थोड़ी देर बाद फिर फोन आया, पूछा कि तुमने बात नहीं मानी, थानेदार बोला कि सर आप मुझे यहाँ से ट्रांसफर करा सकते हैं, लेकिन मैं जब तक यहाँ ड्यूटी पर हूँ, वही करूँगा जो कानूनी रूप से मुझे करना चाहिए । उधर से आवाज आई कि तो फिर तुम्हारी मर्जी, परिणाम भुगतने को तैयार रहो ।
कुछ ही देर बाद कुछ आदमी और एक औरत वहां आए और वो औरत  हवलदार से बोली कि थानेदार और इसके दोस्त ने रात में मेरे घर में जबरदस्ती घुसकर मेरे साथ बलात्कार किया है, मेरा पति जमींदार साहब के घर पर काम करता है और जब ये लौटा तो मैंने इसे सब बता दिया, थानेदार ने डरा दिया था कि किसी को बताया तो जेल में डाल दूँगा । उसका पति बोला कि जब मैंने जमींदार साहब को सब बताया और जमींदार साहब ने थानेदार से बात करनी चाही तो उन्हें पिस्तौल दिखाकर डरा दिया और लॉकअप में बंद कर दिया । हवलदार साहब तुम तो यहाँ सबको जानते हो, देवता जैसे गाँव के जमींदार साहब के साथ ये क्या कर रहा है, इस पापी की रिपोर्ट लिखो और इसे थाने से बाहर करो हम इसको सबक सिखाएंगे ।
कुछ लोग और इकट्ठे हो गए, पूरे गाँव में चर्चा होने लगी कि थानेदार और उसके पत्रकार दोस्त ने जमींदार के घर पर काम करने वाले आदमी की औरत को घर में अकेला पाकर बलात्कार कर दिया और जमींदार के आने पर उस पर भी झूठा केस लगा रहा है । देखते-देखते मशालें लिए हुए भीड़ थाने की तरफ बढ़ी चली आ रही थी, थानेदार ने फोन लगा कर जानकारी देने और सहायता की मांग करना चाही लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया । जमींदार का वो आदमी जिसकी पत्नी बलात्कार की घटना बता रही थी, थानेदार को पकड़ने थानेदार की तरफ बढ़ा तो थानेदार ने पिस्तौल निकालकर हवाई फायर किया, कुछ देर के लिए भीड़ तितर बितर हुई, लेकिन कुछ लोग बहुत गुस्से में थे जिनके हाथ में लाठी, फरसे और बंदूकें भी थीं । उन्होंने थानेदार की पिस्तौल छुड़ानी चाही तो थानेदार ने सामने से छुड़ाने वाले आदमी में गोली मार दी,तब तक कुछ लोगों ने पत्रकार को पकड़कर थाने के बाहर खींच लिया और लात घूंसों से मारने लगे, इधर गोली लगने पर वो आदमी छटपटाकर गिर पड़ा । इतने में एक आदमी ने थानेदार के सिर पर बंदूक की नली रख दी और पिस्तौल छुड़ा ली । पिस्तौल हाथ से छूटते ही कई लोगों ने मिलकर थानेदार को भी बाहर खींच कर लात घूंसों से मारना शुरू कर दिया, थाने के हवलदार और सिपाही एक तरफ खड़े-खड़े सब देख रहे थे, जमींदार के इशारे पर लॉकअप का ताला खोल दिया, जमींदार और उसके आदमी बाहर निकल आए । थानेदार और उसका दोस्त पत्रकार भीड़ से बुरी तरह पिट रहे थे । जमींदार ने दोनों को देखकर कुटिल मुस्कान बिखेरी, एक निगाह अपने लठैतों की तरफ डाली और इशारा समझते ही लठैतों ने दोनों के सिर पर लाठियां मार कर उनकी निर्मम हत्या कर दी । देश के कानून की रक्षा करते हुए एक ईमानदार और साहसी  थानेदार और निर्भीक कर्तव्यपरायण पत्रकार शहीद हो गए । जमींदार गाँव वालों से कह रहा था कि मैंने मना किया था शाम के बाद हवेली वाले रास्ते पर मत जाना, ये माने नहीं और उधर चले गए । प्रेतात्मा इनके अंदर घुस गई और इनसे पाप कराके इन्हें मार भी दिया ।

                                                   क्रमशः
भाग 3
थानेदार और पत्रकार की हत्या की सूचना जिले के पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों तक पहुंच गई, कलेक्टर और एस. पी . भी पुलिस बल के साथ घटना स्थल पर पहुंच गए । पुलिस अधीक्षक ने  दूसरे थानेदार की पदस्थापना थाने में कर दी । कई समाचार पत्रों के संवाददाता भी पहुँचे, मृत थानेदार और पत्रकार के शव पास के शहर में पोस्टमार्टम के लिए भेजे गए और पोस्टमार्टम के बॉस वहीं से उनके परिजनों को  सौंप दिए गए अगले दिन जब दोनों के परिजन उनका अंतिम संस्कार कर रहे थे, समाचार पत्रों में उनके वारे में लोग पढ़ रहे थे कि उन्होंने एक महिला का बलात्कार किया और गुस्साई भीड़ ने उन्हें पीट -पीट कर मार डाला । 
गाँव में पहुँचे नए थानेदार को हवलदार ने पूरी कहानी बताई और जमींदार से पंगा न लेने की सलाह भी दी, थानेदार ने भी जमींदार से मिलकर चलने का निश्चय कर लिया । जमींदार के बुलावे पर थानेदार ने जमींदार से मुलाकात की तो जमींदार ने हवेली की कहानियाँ सुनाईं, थानेदार समझ गया कि जरूर जमींदार का कोई अवैध काम पुरानी हवेली में होता होगा, तो उसने कहा कि जमींदार साहब पुरानी हवेली में आपको जो करना है करो हमें क्या करना, आप तो हमें बताओ कि हम आपके किस काम आ सकते हैं, जैसा आप कहोगे हम बैसा ही करेंगे । जमींदार भी यही चाहता था, दारू मुर्गा की पार्टी हुई और चलते समय जमींदार ने एक लिफाफा थानेदार को थमा दिया । थानेदार भी खुश हो गया । 


कोरोना सोचो ऐसा क्यों

सोचो,ऐसा क्यों ?
"काम किसी का नाम कोरोना का"

" कोरोना एक ऐसी बीमारी जिसका इलाज डॉक्टर नहीं पुलिस कर रही है "

"स्कूल, कॉलेज, मंदिर, मस्जिद में कोरोना तेजी से फैलता है जबकि ऑफिस मीटिंग, राजनीतिक मीटिंग, स्वागत समारोह, उद्धाटन, फीता काटने, माला पहनने, ग्रुप फ़ोटो खिंचाने से नहीं फैलता "

" मशीन बिल्कुल सही रिपोर्ट देगी ये मशीन बनाने वाली कम्पनी नहीं कहती, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट इन्हें बिल्कुल सही मानकर रिपोर्ट बनाते हैं "

" मीडिया ( सोशल, इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट) बारीक से बारीक चीजों की तह में जाती है, कोरोना की रिपोर्ट को हरिश्चंद्र की रिपोर्ट मानती है "

" धर्म,अध्यात्म, योग, आयुर्वेद पर सबको अटूट भरोसा है, कोरोना के मामले को छोड़कर "

" कोरोना का इलाज वही कर रहे हैं, जो कह रहे है कि इसका कोई इलाज नहीं है "

" लघु, मध्यम उधोगों के चलने से कोरोना फैल सकता है, निर्माण कार्यों और बड़े उधोगों से नहीं "
" किराना, कपड़ा, फोटो कॉपी, वाहन मरम्मत जैसी छोटी दुकानों से कोरोना फैल सकता है, शराब की दुकानों से नहीं"

" बड़े शहरों के बड़े निजी अस्पतालों को करोड़ों रुपए मदद मिल सकती है, जिला स्तर के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन देने की मशीन नहीं मिल सकती "

" 100 में से 99 बिना इलाज ठीक हो गए इसकी  चर्चा नहीं होगी, कोई एक इसके डर से, गलत उपचार से  या अन्य बीमारी से मर गया तो उसकी चर्चा जोर शोर से करके कोरोना को कारण बता दिया जाएगा "

अगर सोचोगे और समझोगे कि ऐसा क्यों तो व्यवस्था का कड़वा सच और कुरूप चेहरा स्पष्ट नजर आएगा ।

उम्मीद रखो- व्यंग्य

एक आदमी अपने बेटे से कह रहा था, बेटे तुम्हारी नोकरी चली गयी तो क्या हुआ, फिर मिल जाएगी, डीजल,  पेट्रोल 60 से 80 हो गया कोई बात नहीं, विकास के लिए ये जरूरी भी तो है, तुम्हारे दादा जी को उपचार नहीं मिलने से दुनिया छोड़नी पड़ी तो क्या हुआ, उन्हें अब जीकर करना भी क्या था, तुम अपने दोस्त के किसान पिता की हालत की चिंता मत करो और ये मजदूरों, दुकानदारों की भी चिंता बेकार है, ये सब समय के साथ आते-जाते रहने वाली घटनाएं हैं ।
आस पास देखोगे तो ऐसे ही दुखी होते रहोगे, पीजिटिव रहो, मेरी तरह टी वी देखो, अखबार पढ़ो, ये देखो अखबार में सरकार की योजनाओं के वारे में इन विज्ञापनों में सरकार ने बताया है कि उसने जनता के लिए क्या क्या किया है । बिजली का बिल ज्यादा आता है तो बिजली की खपत कम कर लो, घर की पुताई एक साल बाद करा लेंगे, घी से चुपड़ी रोटी तो नुकसान भी करती है, बिना चुपड़ी रोटी खाने में कोई नुकसान नहीं है । फालतू की चिंता करना छोड़ो, हमारा देश कितना विकास कर रहा है, ये देखो, सरकार की नीतियों से आने वाले समय में हर देश वासी को बहुत लाभ होंगे । भरोसा रखो । आज का समाचार पड़ो हमारे देश के महान उद्योगपति मुकेश अम्बानी जी दुनिया के सबसे अमीर 10 लोगों की सूची में छठवें नम्बर पर आ गए हैं, बेटा इन्हीं की बजह से तो हम जैसे  करोड़ों देशवासी सस्ते मोबाइल डेटा का उपयोग कर रात दिन मोबाइल चलाते रहते हैं । इन्हीं की बदौलत देश में लाखों लोगों को काम मिल रहा है । उम्मीद रखो ये हमारे देश को  बहुत आगे लेकर जाएंगे ।
हमारे लिए आज का दिन गर्व करने का दिन है ।

Wednesday, July 8, 2020

कुंडलियाँ छंद

#कुंडलियाँ#छंद

मेरा कहना मान ले, मत कर ऐसे काम ।
प्रेम गली तू छोड़ दे, क्यों होता बदनाम ।
क्यों होता बदनाम, मान मुश्किल से मिलता ।
है ये ऐसा फूल, बड़ी मुश्किल से खिलता ।
कहते कवि अवधेश, नाम होगा तब तेरा ।
बोलेगा जय राम, छोड़ कर तेरा मेरा ।

अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश

Tuesday, July 7, 2020

तुम्हीं से प्यार करना है ।

ग़ज़ल
तुम्ही से प्यार करना है ।

मुझे तो आज ये इज़हार करना है ।
तुम्हें चाहा तुम्हीं से प्यार करना है ।

निभाएंगे मुहब्बत हम क़यामत तक,
तुम्हारे सामने इक़रार करना है ।

सुलझते गुफ़्तगू से हैं सभी मुद्दे,
यही करना नहीं तकरार करना है ।

खिलाने फूल ख़ुशबू के चलो यारो,
बहारों से चमन गुलज़ार करना है ।

वतन के नौजवानों को जगाने अब,
हमें पैनी क़लम की धार करना है । 

चाहते हो अगर मंज़िल मिले पहले,
तुम्हें भी तेज फ़िर रफ़्तार करना है ।

अँधेरा भाग जाएगा भरोसा रख,
क़मर को नूर की बौछार करना है ।

बढ़ेगी खूब रौनक़ उनके आने से,
बुलाने को उन्हें इसरार करना है ।

भगाने दुश्मनों को मारकर बाहर,
हमें हथियार हर तैयार करना है ।

अवधेश सक्सेना-07072020

Saturday, July 4, 2020

संस्मरण जा पर कृपा राम की

संस्मरण
जा पर कृपा राम की 
माँ को जब भी कहीं जाना होता था, मुझे साथ ले जाती थीं, पिता के देहांत के बाद हम दो भाई की परवरिश में माँ दिन रात मेहनत करती थीं । उस दिन माँ को घर के लिए कुछ जरूरी सामान बाजार से लाना था, माँ और मैं बाज़ार गए थे । बड़े भाई अपने काम पर निकल गए थे । घर सूना था लेकिन हम लोगों को घर की कोई चिंता नहीं रहती थी क्योंकि मोहल्ले में कभी चोरी या लूटपाट जैसी घटनाएं तब नहीं होती थीं । हम माँ बेटे सामान लेकर घर लौट रहे थे, करीब 3-4 किलोमीटर पैदल चले थे तो घर पहुँचने की जल्दी थी, मुझे भूख भी लगी थी, उस समय मेरी उम्र लगभग 10 साल थी । घर पहुँचने ही वाले थे कि घर के बाहर  भीड़ नजर आयी, थोड़ा और पास पहुँचे तो  घर में आग की लपटें और धुँआ देखकर चीख निकल गयी, माँ कह रही थी- है भगवान, ये क्या हो गया  । कुछ लोग पानी की बल्टियाँ घर पर डाल रहे थे, हम घर के अंदर की अपनी चीजों को बचाना चाहते थे, घर के अंदर जाने की कोशिश की, मगर  लोगों ने रोक लिया । घर के बिल्कुल पास में ही एक अच्छा कुँआ है जिसमें बारह महीने पानी रहता है, पूरा मोहल्ला अपनी रस्सी बाल्टियां लेकर कुँए पर मौजूद था, कुछ लोग पानी खींच रहे थे तो कुछ लोग बाल्टियों से पानी आग पर डाल रहे थे । माँ मुझे हिम्मत बंधा रही थीं । मैं माँ के लिए परेशान था । लगभग एक डेढ़ घण्टे के प्रयास  से लोगों ने आग बुझा दी । आग बुझाने वाले आसपास रहने वाले हमारे अधिकांश मुस्लिम भाई थे । सर्व धर्म सम भाव की शिक्षा मुझे बचपन से ही मिली है क्योंकि घर के पास मस्जिद और जैन मंदिर थे तो थोड़ी दूरी पर हिन्दू मंदिर भी थे, घर के पास रहने वालों में सभी मुस्लिम, जबकि मोहल्ले में हिन्दू, जैन, सिख और ईसाई परिवार भी रहते थे, मेरे बचपन के दोस्तों में मुस्लिम, सिख, ईसाई और  जैन भी शामिल हैं । आग बुझ गयी थी लेकिन सामान कुछ नहीं बचा था, ईश्वर की कृपा थी कि हम तीनों सुरक्षित थे । दीवालों के ऊपर लकड़ी की म्यार  और म्यार के ऊपर लकड़ियां, लकड़ियों के ऊपर पत्थर के पाट रखकर पटोर बनती है, पटोर के पाट और लकड़ियां सब जल चुके थे ।
जो औरत अपने पति के जाने का दुख भुगत चुकी हो, जिन बेटों ने अपने पिता का साया उठने का दुख सह लिया हो, उन्हें अन्य कोई मुसीबत क्या परेशान करेगी । माँ और दोनों बेटे जुट गए अपने घर को बनाने में और कुछ ही दिनों के परिश्रम से घर को फिर से रहने के लिए तैयार कर लिया । वो घर वो कुँआ वो पड़ोसी हमेशा याद रहते हैं । उस घर में माँ के नाम से बनी समिति द्वारा संचालित स्कूल चलता है जिसमें वर्तमान में भी मात्र तीन सौ रुपये प्रति माह फीस ली जाती है और लगभग  आधे बच्चों की इससे भी आधी फीस ली जाती है । 

घर में आग लगने की एक और घटना-

अब हम जिस घर में रहते हैं, उसके आसपास कोई मुस्लिम, सिख, जैन, ईसाई नहीं रहता, सभी एक धर्म को मानने वाले लोग हैं ।
3 साल पहले की घटना है, रात को 3 बजे बहुत जोर की आवाज से नींद खुली खिड़की के कांच से बाहर खम्बे पर आग जलती दिखी, लाइट चली गयी थी, मैं, पत्नी, छोटा बेटा और बेटी जाग गए थे, बड़ा बेटा दिल्ली में अपनी upsc सिविल सर्विस परीक्षा की  तैयारी कर रहा था, इसलिये घर पर नहीं था । हम लोग घर की दूसरी मंजिल पर रहते हैं, नीचे ड्राइंग रूम और स्टोर रूम हैं । मैंने बॉलकनी में आकर देखा तो नीचे की गैलरी से धुँआ निकल रहा था, मैं समझ गया कि नीचे भी आग लग चुकी है । मैंने पत्नी और बच्चों को जल्दी से बाहर निकाल कर घर के बाहर बिठाया, नीचे की गैलरी बाहर से खोली तो मीटर के बोर्ड और आस पास आग लगी हुई थी, गैलरी में  धुँआ भरा हुआ था, गैलरी के दरवाजे के रोशनदान का कांच निकाला तो धुँआ बाहर निकलना शुरू हुआ । घर से बाहर नल है उसमें लेजम लगाकर पानी से आग बुझाने के लिए लेजम गैलरी के अंदर से लानी थी, बेटा झुका हुआ अंदर से लेजम लेकर आया, बिजली की केबल में करेंट न हो इसका डर था । सामने रहने वाले परिवार का एक लड़का उसके घर से सब देख रहा था, मेरे बालकनी में निकलने के पहले से ही वो उसके घर की बाउंड्री पर अंदर खड़ा था । 
अन्य घरों के लोग घरों के अंदर ही थे । मैंने बिजली विभाग के  स्थानीय चाबी घर पर कई बार फोन किया किसी ने फोन नहीं उठाया । 
लेजम से डरते-डरते मैंने पानी से आग बुझाई,  केबल खंबे पर भी जल चुकी थी, इसलिए करेंट नहीं था । मैं अपने वाहन से चाबी घर गया तो वहाँ अंदर से ताला लगा था, किसी ने ताला नहीं खोला बहुत आवाजें लगाईं । बाहर से जाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि ये लोग चौराहे पर 5 बजे चाय की दुकान पर चाय पीने जाते हैं । तब 4 बजे थे, मैं वापिस आ गया, धुँआ अभी भी निकल रहा था, बेटे को मैंने पानी डालने से मना कर दिया था । मैंने फिर सावधानी स लेजम को पकड़ कर आग पर पानी डाला । धुँआ कम हो गया, 5 बजे मैं उस चाय की दुकान पर पहुँचा तो बिजली कर्मचारी मिल गए, अपनी समस्या बताई तो वो वोले कि आपको हेल्पलाइन नम्बर पर कम्प्लेंट दर्ज करानी होगी, उनसे हेल्पलाइन नम्बर लेकर कम्प्लेंट दर्ज कराई तो उनका नसेनी वाला वाहन न होने से वो आने को तैयार नहीं थे, मैं निवेदन करके अपने वाहन से उन्हें लाया कि कम से कम केबल का हिस्सा तो घर से दूर कर दें ।
उन्होंने केबल अलग कर दी, खम्बे पर देखा तो उन्होंने बताया कि केबल खम्बे पर जलकर अलग हो चुकी है ।
दूसरे दिन लाइट चालू हो सकी ।
खम्बे के नीचे मैंने देखा तो मुझे एक लकड़ी के टुकड़े में जली हुई मशाल जैसी मिली, किसी ने लंबे बांस में आगे लकड़ी का टुकड़ा बांध कर पॉलीथिन लपेट कर केबल में आग लगाई थी । कोशिश शायद केवल लाइट बंद करने की रही हो, पर घर में आग लगने पर शायद उस शरारती तत्व को और अधिक खुशी मिली हो । ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे कि ये खुशी असली खुशी नहीं होती, असली खुशी तो दूसरों की मदद करने पर मिलती है । ईश्वर की कृपा से हम दूसरों की मदद के लिए हाथ बढ़ा पाते हैं और हमें वो असली खुशी मिलती रहती है ।
जा पर कृपा राम की होई ।
ता पर कृपा करें सब कोई ।

अवधेश सक्सेना- 05072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश

कहमुक़री

कहमुक़री

रुतबा मुझ पर झाड़ा करता 
गुस्सा हर पल मुख से झरता
बन ठन के वो जाता दफ़्तर ।
क्या सखि साजन ? ना सखि अफसर ।

अवधेश सक्सेना-04072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश

Friday, July 3, 2020

प्रियामृतावधेश

मेरी मौलिक विधा #प्रियामृतावधेश में एक कविता 

विधान- पंक्तियों में 
बढ़ते क्रम में मात्राएं 
2,4,6,8,10,12,14,16,18
घटते क्रम में मात्राएं 
18,16,14,12,10,8,6,4,2
18 मात्राओं वाली पंक्तियां सम तुकांत
शुरू और आखिरी की 2 मात्राओं वाली पंक्तियां सम तुकांत ।
मन के किसी भाव के आते ही उसे लिखने के लिए ये अच्छी विधा है । 
इस विधा में अभ्यास करें, अच्छा लगेगा ।

#प्रियामृतावधेश 
#मंज़िल_पाना_है ।

कल
जो था
आज नहीं
अभी जो पास 
कल रहेगा नहीं 
दुख जाता सुख आता
सुख भी कहाँ ठहर पाता
जीवन सुख दुख का पहिया है
कठिन राह पर  बढ़ते   जाना   है ।
हमें   आख़िरी   मंज़िल  पाना  है ।
समय बदलता जगह बदलती
सुई घड़ी की बस चलती 
समय नहीं रुकता है
हमसे कहता है
संग-संग चल 
गँवा नहीं 
कोई
पल

अवधेश सक्सेना- 03072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश

Thursday, July 2, 2020

1 जुलाई 2020 के ऑनलाइन कवि सम्मेलन में सम्मिलित रचनाकार


कवि सम्मेलन का समाचार

पिता से शान है घर की, पिता से मान है घर का- मुरारी लाल'मानव' अखिल भारतीय ऑनलाइन कवि सम्मेलन में 20 कवियों ने काव्य रस बरसाया । शिवपुरी / / भारतीय सृजन संस्थान शिवपुरी के आमंत्रण पर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के 20 कवियों ने गत दिवस काव्य रस की वर्षा करते हुए श्रृंगार, ओज, देश भक्ति, प्रकृति प्रेम और हास्य व्यंग्य की रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया । गत दिवस शाम 6 बजे शुरू हुआ कवि सम्मेलन रात 10 बजे तक चलता रहा । भारतीय सृजन संस्थान के अध्यक्ष अवधेश सक्सेना ने अत्यंत प्रभावी ढंग से पटल का संचालन करते हुए आमंत्रित कवियों का सम्मान किया और रचना पाठ के लिए पूर्व निर्धारित क्रम से ससम्मान आमंत्रित किया । सरस्वती वंदना का मधुर वाणी से गायन पिछोर की कवियत्री डॉ परवीन महमूद ने किया । बाराबंकी उत्तर प्रदेश के कवि सुशील कुमार यादव ने एक गीत सुनाया दिल का सौदा करके तुमसे ये अनमोल समय न खोते, काश सदा अजनबी ही होते । कानपुर से श्रीमती दीपांजलि दुबे ने छंद मुक्त रचना सुनाते हुए कहा कि राहें ही मंजिल पर ले जातीं, सोच समझ कर बढ़ आगे । दिल्ली की श्रीमती रुचिका सक्सेना ने अपनी मधुर वाणी और मनमोहक अंदाज़ में सुनाया कि खो देने का डर कैसा, मिल जाए तो बिछड़ने का डर कैसा । अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश से सर्वेश उपाध्याय ने देशभक्ति का गीत प्रस्तुत किया इस देश के हालात पर है मन ये रो रहा । वो कौन है जो नफ़रतों के बीज वो रहा । ग्वालियर से श्रीमती पुष्पा मिश्रा ने अपनी कविता कुछ इस प्रकार सुनाई हृदय में प्रेम रस बहता उसी को गुनगुनाती हूँ । ग्वालियर से ही श्रीमती पुष्पा शर्मा की पंक्तियां देखिए इस पथ का उद्देश्य नहीं है, शांत भवन में टिक रहना, जाना है उस मंजिल तक जिसके आगे राह नहीं । विदिशा के धरम सिंह ने सुनाया आज मुझसे कुछ यूँ कहने लगा था आईना, देख कर आँसू मेरे बहने लगा था आईना । आलम पुर भिंड से कु. नेहा सोनी ने माटी और देशभक्ति की शानदार रचना प्रस्तुत की राष्ट्र की समस्यायों का कुछ भार ढोना चाहिए । सागर की डॉ नमृता फुसकेले ने नारी विषय पर कविता पढ़ी नारी तुम जीवन का नया पाठ पढ़ाती हो । भिंड से नीलम सोनी जी ने सुंदर कविता पाठ किया जीवन को सार्थक बनाना है । जबलपर से राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका कु.चंदा देवी स्वर्णकार ने बेटियों का महत्व रेखांकित करती हुई कविता सृष्टि के आधार स्तंभ बेटियां तो फिर बेटी क्यों । प्रतापगढ़ राजस्थान से कमलेश शर्मा कमल ने सुंदर गीत के माध्यम से दुश्मन को ललकारा, दुश्मन देश के सुन ले मेरी छोटी सी ललकार, थाम ले अपने कदम नहीं तो खाएगा फिर मार । एटा उत्तर प्रदेश के मुरारी लाल मानव ने अपने मुक्तक सुनाए पिता से शान है घर की, पिता से मान घर का है, पिता संतान की ताकत पिता अरमान घर का है । इंजी. शंभु सिंह रघुवंशी अजेय गुना ने व्यंग्य रचना पढ़ कर सुनाई हम गधे को घोड़ा बना रहे हैं, सब इसको साबुन लगा रहे हैं । पिछोर शिवपुरी की डॉ परवीन महमूद ने मधुर कंठ से गाया अपने नाम के पहले लिख दे तू भी मेरा नाम, मैं तेरी राधे बन जाऊं तू मेरा घनश्याम । दिल्ली की श्रीमती सुदर्शन शर्मा ने प्रेम को परिभाषित करती हुई रचना सुनाई चालीस पचास पार की औरतें यदि लिखतीं है प्रेम तो कोई क्यों ढूंढे उनमें मसाला । लखनऊ की श्रीमती निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी' ने एक भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति पौधे में एक गमला उग आए उल्टी गंगा बह आए, से श्रोताओं की प्रशंसा बटोरी । पटल के आग्रह पर संचालन कर रहे संस्थान के अध्यक्ष अवधेश सक्सेना ने अपनी ग़ज़ल सुनाई - ख़्वाब तू माँ बाप के साकार कर, प्यार उनसे है अगर इज़हार कर । चाहता लिखना असर वाली ग़ज़ल, तेज अपनी तू कलम की धार कर । पटल पर सुनने वालों ने ग़ज़ल के हर शेर की जमकर तारीफ़ की । अंत में अध्यक्षता कर रहे जयपुर के राम किशोर वर्मा ने अपने कविता पाठ से कवि सम्मेलन की सफलता में चार चाँद लगा दिए । उनका दोहा देखें- फटे किसी दिल का नहीं, बोलें ऐसे बोल । सिल जाएं जो फट गए, वह वाणी अनमोल । अंत में श्योपुर के पण्डित सुरेंद्र शर्मा 'सागर ' ने सभी का आभार प्रकट किया । भारतीय साहित्य सृजन संस्थान शिवपुरी की ओर से इस ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी कवियों को उत्कृष्ट रचना पाठ करने पर अध्यक्ष अवधेश सक्सेना द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गए ।

Wednesday, July 1, 2020

कुंडलियाँ

कुंडलियाँ दूजा कोई है नहीं, किसका लोगे नाम । दर्शन प्रभु के जब करो, बनते बिगड़े काम । बनते बिगड़े काम, जपो प्रभु नामी माला । भजो कृष्ण का नाम,वही है तारन वाला । जल से कर अभिषेक,करो तुम शिव की पूजा । हर लें सारे कष्ट, नहीं है कोई दूजा । अवधेश-0272020