वंचित वर्ग
20 साल पहले शिवपुरी में जब कलेक्टर कांताराव साहब थे उसी समय सूखा और अकाल की स्थिति बनी थी, उन्होंने उन दूरस्थ गांवों के लिये विशेष योजनाबद्ध ढंग से राहत पहुंचाई थी, मैंने जिले के सभी विकास खंडों के ऐसे कई गाँवों का भ्रमण किया था जहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल था, घने जंगल और अन्य राज्यों की सीमा से लगे गाँव इनमें शामिल थे, कलेक्टर साहब खुद ऐसे गाँवों का लगातार भ्रमण कर रहे थे, हर घर के लिए राशन पानी का इंतज़ाम कराया था ।
कई गाँवों से हम लाचार गरीब बीमारों को अपने वाहन में लाकर शिवपुरी के चिकित्सालय में भर्ती करते थे ।
वर्तमान में जब कोई भी काम नहीं चल रहा, यातायात बंद है, उन दूरस्थ गाँवों के ग्रामीणों का क्या हाल होगा जो अधिकांशतः आदिवासी वर्ग के हैं । शहर के नजदीक के ग्रामों, मोहल्लों तक तो मदद पहुंच जाती है, कभी कभी जरूरत से ज्यादा भी पहुंच जाती है । बंचित वर्ग वंचित क्षेत्र वंचित ही बना रहता है ।
आज मैंने जो ग़ज़ल लिखी उसका एक शेर-
आग लगती पेट में तो बांध कपड़ा सो रहे,
वो समय भी था हमारे हाथ में जब काम था ।
अवधेश-10042020
20 साल पहले शिवपुरी में जब कलेक्टर कांताराव साहब थे उसी समय सूखा और अकाल की स्थिति बनी थी, उन्होंने उन दूरस्थ गांवों के लिये विशेष योजनाबद्ध ढंग से राहत पहुंचाई थी, मैंने जिले के सभी विकास खंडों के ऐसे कई गाँवों का भ्रमण किया था जहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल था, घने जंगल और अन्य राज्यों की सीमा से लगे गाँव इनमें शामिल थे, कलेक्टर साहब खुद ऐसे गाँवों का लगातार भ्रमण कर रहे थे, हर घर के लिए राशन पानी का इंतज़ाम कराया था ।
कई गाँवों से हम लाचार गरीब बीमारों को अपने वाहन में लाकर शिवपुरी के चिकित्सालय में भर्ती करते थे ।
वर्तमान में जब कोई भी काम नहीं चल रहा, यातायात बंद है, उन दूरस्थ गाँवों के ग्रामीणों का क्या हाल होगा जो अधिकांशतः आदिवासी वर्ग के हैं । शहर के नजदीक के ग्रामों, मोहल्लों तक तो मदद पहुंच जाती है, कभी कभी जरूरत से ज्यादा भी पहुंच जाती है । बंचित वर्ग वंचित क्षेत्र वंचित ही बना रहता है ।
आज मैंने जो ग़ज़ल लिखी उसका एक शेर-
आग लगती पेट में तो बांध कपड़ा सो रहे,
वो समय भी था हमारे हाथ में जब काम था ।
अवधेश-10042020
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