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परिचय

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Tuesday, April 7, 2020

1222 1222 1222 1222
विषय धन भोग में सुग्रीव भुला बैठा बचन अपने ।
पवन सुत ने कहा तब राम से वो भी चला मिलने ।
बिठाया राम ने उनको पवनसुत सर नवाते हैं ।

रखा फिर हाथ जब हनुमान के सिर माथ रघुवर ने ।
उतारी हाथ से मुदरी कहा सब हाल रघुवर ने ।

निशानी राम की लेकर पवनसुत दौड़ जाते हैं ।

बताते गीध योजन चार सौ दूरी पे जाना है ।
सभी सोचें समंदर पे हमें तो पार पाना है ।
पवनसुत भूले जो शक्ति उसे जामत जगाते हैं ।

पवन सा बल विवेकी ज्ञान बुद्धि के धारक हो ।
हुए अवतरित तुम तो राम काजों के ही कारक हो ।

इसे सुनकर पवनसुत पल में पर्वत से हो जाते हैं ।

कनक सा रंग तेजोमय महा आकार है जिनका ।
करें सिंहनाद इसको लांघना बस खेल है उनका ।
सहायक और रावण को कहो तो मार लाते हैं ।

कहें जामवंत सिया को देख तुमको लौट आना है।
 मिटाने पाप को तो राम को खुद पार जाना है ।

बचन जामत के सुन हनुमान के मन को भी भाते हैं ।








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