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विषय धन भोग में सुग्रीव भुला बैठा बचन अपने ।
पवन सुत ने कहा तब राम से वो भी चला मिलने ।
बिठाया राम ने उनको पवनसुत सर नवाते हैं ।
रखा फिर हाथ जब हनुमान के सिर माथ रघुवर ने ।
उतारी हाथ से मुदरी कहा सब हाल रघुवर ने ।
निशानी राम की लेकर पवनसुत दौड़ जाते हैं ।
बताते गीध योजन चार सौ दूरी पे जाना है ।
सभी सोचें समंदर पे हमें तो पार पाना है ।
पवनसुत भूले जो शक्ति उसे जामत जगाते हैं ।
पवन सा बल विवेकी ज्ञान बुद्धि के धारक हो ।
हुए अवतरित तुम तो राम काजों के ही कारक हो ।
इसे सुनकर पवनसुत पल में पर्वत से हो जाते हैं ।
कनक सा रंग तेजोमय महा आकार है जिनका ।
करें सिंहनाद इसको लांघना बस खेल है उनका ।
सहायक और रावण को कहो तो मार लाते हैं ।
कहें जामवंत सिया को देख तुमको लौट आना है।
मिटाने पाप को तो राम को खुद पार जाना है ।
बचन जामत के सुन हनुमान के मन को भी भाते हैं ।
विषय धन भोग में सुग्रीव भुला बैठा बचन अपने ।
पवन सुत ने कहा तब राम से वो भी चला मिलने ।
बिठाया राम ने उनको पवनसुत सर नवाते हैं ।
रखा फिर हाथ जब हनुमान के सिर माथ रघुवर ने ।
उतारी हाथ से मुदरी कहा सब हाल रघुवर ने ।
निशानी राम की लेकर पवनसुत दौड़ जाते हैं ।
बताते गीध योजन चार सौ दूरी पे जाना है ।
सभी सोचें समंदर पे हमें तो पार पाना है ।
पवनसुत भूले जो शक्ति उसे जामत जगाते हैं ।
पवन सा बल विवेकी ज्ञान बुद्धि के धारक हो ।
हुए अवतरित तुम तो राम काजों के ही कारक हो ।
इसे सुनकर पवनसुत पल में पर्वत से हो जाते हैं ।
कनक सा रंग तेजोमय महा आकार है जिनका ।
करें सिंहनाद इसको लांघना बस खेल है उनका ।
सहायक और रावण को कहो तो मार लाते हैं ।
कहें जामवंत सिया को देख तुमको लौट आना है।
मिटाने पाप को तो राम को खुद पार जाना है ।
बचन जामत के सुन हनुमान के मन को भी भाते हैं ।
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