चले हनुमान ले रघुनाथ हृदय में बसाकर के ।
थकावट को मिटाने को कहे मैनाक आकर के ।
मुझे विश्राम कहाँ रघुनाथ ही जब कुछ कराते हैं ।
सुरों ने भेज सुरसा को परीक्षा ली पवनसुत की ।
पसारा जो बदन तो देख चतुराई पवनसुत की ।
अगर सोलह युजन सुरसा वो बत्तीस हो जाते हैं ।
युजन सौ जब किया सुरसा ने तब लघु रूप में आकर ।
कहा जाने मुझे दो मैं मिलूंगा लौट के आकर ।
घुसे मुख में निकल कर फिर पवनसुत आगे जाते हैं ।
रखे हृदय श्री रघुनाथ हों प्रवेश लंका में ।
महल में सो रहा रावण वहां पर देख लंका में ।
सिया दिखतीं नहीं तब दूसरे भवनों पे जाते हैं ।
खबर लेकर गए हनुमान जब रघुनाथ के आगे ।
खुशी वो देखते बनती किसी के भाग हैं जागे ।
श्री रघुनाथ तब हनुमान को हृदय लगाते हैं ।
थकावट को मिटाने को कहे मैनाक आकर के ।
मुझे विश्राम कहाँ रघुनाथ ही जब कुछ कराते हैं ।
सुरों ने भेज सुरसा को परीक्षा ली पवनसुत की ।
पसारा जो बदन तो देख चतुराई पवनसुत की ।
अगर सोलह युजन सुरसा वो बत्तीस हो जाते हैं ।
युजन सौ जब किया सुरसा ने तब लघु रूप में आकर ।
कहा जाने मुझे दो मैं मिलूंगा लौट के आकर ।
घुसे मुख में निकल कर फिर पवनसुत आगे जाते हैं ।
रखे हृदय श्री रघुनाथ हों प्रवेश लंका में ।
महल में सो रहा रावण वहां पर देख लंका में ।
सिया दिखतीं नहीं तब दूसरे भवनों पे जाते हैं ।
खबर लेकर गए हनुमान जब रघुनाथ के आगे ।
खुशी वो देखते बनती किसी के भाग हैं जागे ।
श्री रघुनाथ तब हनुमान को हृदय लगाते हैं ।
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