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परिचय

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Wednesday, April 8, 2020

चले हनुमान ले रघुनाथ हृदय में बसाकर के ।
थकावट को मिटाने को कहे मैनाक आकर के ।

मुझे विश्राम कहाँ रघुनाथ ही जब कुछ कराते हैं ।

सुरों ने भेज सुरसा को परीक्षा ली पवनसुत की ।
पसारा जो बदन तो देख  चतुराई पवनसुत की ।

अगर सोलह युजन सुरसा वो बत्तीस हो जाते हैं ।
युजन सौ जब किया सुरसा ने तब लघु रूप में आकर ।
कहा जाने मुझे दो मैं मिलूंगा लौट के आकर ।

घुसे मुख में निकल कर फिर पवनसुत आगे जाते हैं ।

रखे हृदय श्री रघुनाथ हों  प्रवेश लंका में ।
महल में सो रहा रावण वहां पर देख लंका में ।

सिया दिखतीं नहीं तब दूसरे भवनों पे जाते हैं ।

खबर लेकर गए हनुमान जब रघुनाथ के आगे ।
खुशी वो देखते बनती किसी के भाग हैं जागे ।

श्री रघुनाथ तब हनुमान को हृदय लगाते हैं ।

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