ग़ज़ल
आदमी मैं आम था ।
ज़ुर्म करके बच गया वो मेरे सर इल्ज़ाम था ।
जान की बाज़ी लगा दी क्या मिला ईनाम था ।
आपने समझा नहीं वो क्या हमारे बीच था,
आपसे जो सिलसिले थे इश्क उसका नाम था ।
आग लगती पेट में तो बांध कपड़ा सो रहे,
वो समय भी था हमारे हाथ में जब काम था ।
पी रहे थे सब वहाँ साकी के हाथों झूम कर,
हम परेशां थे हमारे हाथ खाली जाम था ।
दूर इतने हो गए वो रास्ता मुश्किल हुआ,
वो नहीं थे पास उनका ख्याल सुबहो-शाम था ।
देख लो बाज़ार का क्या हाल है अपने यहाँ,
माल जो घटिया बना उसका ही ऊंचा दाम था ।
खास लोगों ने यहाँ पर जीत ली दुनिया मेरी,
मैं नहीं कोई सिकन्दर आदमी मैं आम था ।
अवधेश-09042020
आदमी मैं आम था ।
ज़ुर्म करके बच गया वो मेरे सर इल्ज़ाम था ।
जान की बाज़ी लगा दी क्या मिला ईनाम था ।
आपने समझा नहीं वो क्या हमारे बीच था,
आपसे जो सिलसिले थे इश्क उसका नाम था ।
आग लगती पेट में तो बांध कपड़ा सो रहे,
वो समय भी था हमारे हाथ में जब काम था ।
पी रहे थे सब वहाँ साकी के हाथों झूम कर,
हम परेशां थे हमारे हाथ खाली जाम था ।
दूर इतने हो गए वो रास्ता मुश्किल हुआ,
वो नहीं थे पास उनका ख्याल सुबहो-शाम था ।
देख लो बाज़ार का क्या हाल है अपने यहाँ,
माल जो घटिया बना उसका ही ऊंचा दाम था ।
खास लोगों ने यहाँ पर जीत ली दुनिया मेरी,
मैं नहीं कोई सिकन्दर आदमी मैं आम था ।
अवधेश-09042020
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