#ग़ज़ल
#तीरगी_जब_इधर_हो_गई ।
तीरगी जब इधर हो गई ।
रोशनी तब उधर हो गई ।
तंगहाली हुई क्या इधरज़रा,
अजनबी हर नज़र हो गई ।
आशना तो मिला ही नहीं,
पर कहानी अमर हो गई ।
काम थोड़ा हमें जो मिला,
बस हमारी गुजर हो गई ।
हम भटकते यहां आ गए,
अब यहीं पे बसर हो गई ।
बोझ ढोते रहें ता उमर,
आज टेड़ी कमर हो गई ।
जो कभी था सुहाना सफ़र,
आज मुश्किल डगर हो गई ।
अवधेश कुमार सक्सेना -31082020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
