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 नाम -इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना पिता का नाम- स्व.श्री मुरारी लाल सक्सेना शैक्षणिक योग्यता - DCE(Hons.),B.E.(Civil), MA ( Sociology), LL.B., ...

Tuesday, March 1, 2022

यूक्रेन में भारतीय छात्र की दर्दनाक मौत का एक सटीक विश्लेषण

 

यूक्रेन में भारतीय छात्र की दर्दनाक मौत का एक सटीक विश्लेषण

आरक्षण व्यवस्था, नेताओं के स्वामित्व वाले निजी कॉलेजों में डोनेशन के नाम पर 1 करोड़ तक वसूलने  एवं सत्ता की  बागडोर पूंजीपतियों और सत्ता के भूखे राजनीतिज्ञों के हाथ में होने के कारण यूक्रेन में नवीन शेखरप्पा छात्र मारा गया और 20 हजार छात्र मौत के साये में भगवान भरोसे अनियमित धड़कन के साथ धीमी तेज सांसे ले रहे हैं । इनके परिवारजन और सच्चे देशभक्त देशवासियों की चिंता और बेचैनी को कोई समझने वाला नहीं है ।
नेताओं के भक्त इन छात्रों को ही दोषी बताने में असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा कर रहे हैं ।
आरक्षण व्यवस्था के कारण देश के सरकारी कॉलेजों में सीटों की कमी के कारण 90 प्रतिशत से ऊपर लाने वाले छात्रों का डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं हो पाता,एडमिशन न मिलने वाले छात्रों में आरक्षित वर्ग की जातियों के छात्र भी होते हैं । देश के ज्यादातर कॉलेज सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के या इनके निकट संबंधियों के होने से इन कॉलेजों में 1 करोड़ तक डोनेशन देने वालों को ही एडमिशन मिल पाते हैं । चीन, रूस,यूक्रेन एवं अन्य देशों में 25 लाख तक के टोटल खर्चे में MBBS हो जाता है, अच्छे साधन और अच्छी फेकल्टी की उपलब्धता भी इन विदेशी कॉलेजों में होती है जबकि हमारे देश के कॉलेजों में तो फेकल्टी की अत्यधिक कमी है ।
नेताओं के कॉलेजों में 1 करोड़ डोनेशन देकर डॉक्टर बने छात्र करोड़ों की कमाई के लिए जांच उपचार, दवा, ऑपरेशन, आई सी यू, वेंटिलेटर का सहारा लेकर अपने ही देशवासियों की जीवन भर की कमाई पर डाका डाल देते हैं ।
भारत के तथाकथित मित्र देश द्वारा किये गए हमलों से भारतीय नागरिक नवीन शेखर मारा गया तो पूंजीपतियों और सत्ता के भूखे नेताओं की गोदी में बैठे मीडिया और राजनीतिक लाभ के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वाले आई टी सेलों के भ्रामक संदेशों से आहत मृत छात्र नवीन के पिता को ये कहना पड़ रहा है कि आरक्षण के कारण 97 प्रतिशत अंक लाने पर भी उनके बेटे का एडमिशन नहीं हो पाया था और 1 करोड़ का डोनेशन इन नेताओं के कॉलेज में मांगा जा रहा था तब वो क्या करते । उन्हें प्रधानमंत्री और सरकार से अपने बेटे की डेड बॉडी मंगवाने की मांग करनी पड़ रही है । मजबूरी ही अपनी जमीन से दूर ले जाती है, अगर देश में हीं इन 20000 छात्रों को MBBS करने की सुविधा मिली होती तो ये छात्र अपने माता पिता, अपना घर, अपना देश छोड़कर विदेश क्यों जाते ।
इन छात्रों को यूक्रेन से वापस लाने की व्यवस्था सरकार को करनी थी । सरकारी एयर इंडिया को निजी कम्पनी को बेचने के बाद जो हवाईजहाज भेजे गए उनमें 18 हजार लगने वाला किराया जब 1 लाख लिया गया तो वही छात्र वापस आ सके जो 1 लाख दे सकते थे ।  सरकार के मंत्रियों को इनका स्वागत करते हुए मीडिया पर दिखाया गया जैसे सरकारी खर्चे पर इन्हें लाया गया हो ।
छात्रों से कहा जा रहा है कि सैकड़ों हजारों किलोमीटर चलकर अन्य देशों के बॉर्डर पर पहुंच जाएं वहाँ से उन्हें लाने की व्यवस्था की गई है । बम और मिसाइलों के हमलों के बीच से ये छात्र हजार किलोमीटर की यात्रा करके अपनी खुद की व्यवस्था से बॉर्डर पर पहुंच जाएं, इस तरह की शर्मनाक एडवाइजरी दी जा रही है ।
1971 में रूस ने भारत का साथ दिया था क्योंकि युद्ध में उससे खरीदे गए हथियारों, टैंक, प्लेन आदि का उपयोग हुआ था, अभी भी दोस्ती व्यापारिक कारणों से है, वो हमें हथियार फ्री नहीं देता, हम उसके ग्राहक हैं, अच्छे ग्राहक से व्यापारी अच्छे संबंध रखना चाहता है, बस यही दोस्ती है । आत्म निर्भरता की बात करने वाले भारत को इस व्यापारिक रिश्ते को दोस्ती नहीं समझना चाहिए । दुनिया के अधिकांश देश कमजोर देश यूक्रेन के साथ खड़े हैं, यूक्रेन के राष्ट्रपति के संदेश पर देर तक खड़े होकर तालियां बजाकर उसका समर्थन कर रहे हैं, लेकिन हम रूस से दोस्ती के नाम पर चुप्पी साधे बैठे हैं, कम से कम अपने छात्रों की वापिसी तक ही हमले रोकने के लिए रूस को तैयार कर लें, नहीं तो छोड़ें ऐसी दोस्ती जो सही मायने में दोस्ती है ही नहीं । भूलें नहीं कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के मांगने पर भी रूस ने साथ नहीं दिया था तब हिटलर का सहयोग नेताजी को लेना पड़ा था, 1962 में चीन से युध्द के समय भी रूस ने साथ नहीं दिया था, 1965 के युध्द के बाद ताशकंद समझौता रूस ने ही कराया और शास्त्री जी की मौत ताशकंद में ही हो गई थी । इस पूरे प्रकरण में विदेश मंत्री के अनुभवों के दुष्परिणाम उनकी कार्यक्षमता में आई गिरावट के रूप में दिखाई दिए हैं । विदेश मंत्री को तत्काल हटा कर किसी अन्य योग्य व्यक्ति को ये जिम्मेदारी सौंप देनी चाहिए । सेना और वायुसेना को इवेकुएशन का पूरा काम सौंपना चाहिए जो तिरंगे झंडे के साथ अपने वाहनों और वायुयानों से छात्रों को सुरक्षित निकालकर लाये और रूस को ये बता दिया जाए कि हम ऐसा कर रहे हैं, जब तक हमारे पूरे नागरिक यूक्रेन से बाहर नहीं आएंगे, रूस को हमले रोकने पड़ेंगे और अगर रूस नहीं मानता तो हमारे उसके साथ सारे व्यापारिक रिश्ते भी खत्म होंगे । रूस और चीन की दोस्ती के कारण हमें रूस से ज्यादा उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए ।
यूक्रेन को समर्थन न करने और रूस से दोस्ती की बातें प्रचारित होने से देशभक्त युक्रेनियों द्वारा हमारे छात्रों के साथ दुर्व्यवहार भी होने लगे हैं । देशभक्ति की बड़ी बड़ी बातें करने वाले नेताओं को चाहिए कि पूंजीपतियों की कम्पनियों से आयातित अधिकारियों की सलाह के स्थान पर अपने ही देशभक्त संगठनों के शीर्ष बुद्धिजीवी पदाधिकारियों की सलाह पर निर्णय लेना प्रारंभ करें जिससे नोटबन्दी,लॉक डाउन, किसान आंदोलन आदि के कड़वे अनुभवों से देश को बचाया जा सके । देशभक्त संगठनों से भी आग्रह है कि राजनीतिक लाभ हानि की सोच से ऊपर उठकर देश और देशवासियों के समग्र हित में सोचें और सत्ता में बैठे अपने प्रतिनिधियों को सही मार्गदर्शन देने में संकोच न करें ।

©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 02032022
शिवपुरी, मध्य प्रदेश

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