ग़ज़ल का मदरसा -17
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आदरणीय R.s. Bagga जी के आदेश के अनुसार "ग़ज़ल का मदरसा " इस आयोजन का सत्रहवाँ अंक लेकर नाचीज़ आप की सेवा में हाज़िर है | "ग़ज़ल का मदरसा " की पिछली 16 कड़ियों में ग़ज़ल से संबधित मूलभूत ज्ञान सरल भाषा में आप को देने की कोशिश की है | जो लोग अभी तक पिछले अंक नहीं देख पाए हैं उनके लिए इस अंक में लिंक उपलब्ध है ,पुरानी सभी कड़ियाँ देख सकते हैं , शेयर कर सकते हैं | कहीं पर कॉपी करके सेव कर सकते हैं | इस अंक से हम एक बह्र पर अभ्यास का क्रम शुरू कर रहे हैं | जो लोग इसमें रुचि रखते हैं , वे सिर्फ़ और सिर्फ़ दी गई बह्र पर ही अपनी ग़ज़लें कमेंट में प्रस्तुत कर सकते हैं , दी गई बह्र के अलावा अपनी रचना पटल पर प्रस्तुत करें | आपकी ग़ज़लों में कोई कमी दिखाई देगी तो नाचीज़ अपनी जानकारी के अनुसार अपने सुझाव देने की कोशिश करेगा | अन्य विद्वान भी अपने सुझाव दे सकते हैं | विद्वान भी संबधित बह्र पर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं | उम्मीद की जाती है अधिक से अधिक लोग इस आयोजन में भाग लेंगे | आपकी ग़ज़ल में क़ाफ़िया एवं रदीफ़ आपके होंगे |
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आज की बह्र है --बहर-ए-रमल मुसद्दस महजूफ़
मापनी -2122 2122 212
अरकान-फ़ाइलातुन- फ़ाइलातुन -फ़ाइलुन
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गीत --दिल के' अरमाँ/ आँसुओं में/ बह गए =2122 / 2122 /212
++ग़ज़ल++
थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ
क्यों परेशां हैं चमन में तितलियाँ
साल सत्तर से भले आज़ाद हैं
आज भी सजती बदन की मंडियाँ
अब घरों में भी कहाँ महफ़ूज़ है
ख़ौफ़ के साये में रहती बेटियाँ
कहते हैं हम बेटा-बेटी एक से
फ़र्क़ बाक़ी है नज़र के दरमियाँ
है विदाई का वही मंज़र 'तुरंत '
सिसकियाँ शहनाइयाँ और हिचकियाँ
--गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
**तक़्तीअ **
थम रही हैं/ क्यों नहीं ये/ सिसकियाँ =2122 / 2122 /212
क्यों परेशां/ हैं चमन में/ तितलियाँ =2122 / 2122 /212
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यह एक ग़ैर-मुरद्दफ़ ग़ज़ल है | जिसमें
इयाँ -स्वर के क़ाफ़िया बाँधे गए हैं |
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जिन साथियों ने पुराने अंक नहीं देखे हैं उनके लिए लिंक --
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